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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा कलावतीए पोताना हृदयमां चिंतव्यु के, "ए विद्याधरनी पुत्री मारी बहेन छे. वळी ते कुलीन अने परणीने आवेली छे, तेथी न्यायमार्गे जोतां ते तेणीनु अपमान थाय ते युक्त नथी. राजाने अंतःपुरमां जेटली राणीओ होय, तेओने वारा प्रमाणे मान आपq जोईए. तेमनुं उल्लंघन करवू न जोईए, एवी मर्यादा छे. आ प्रमाणे थाय तो ज न्याय कहेवाय नहीं तो अन्याय कहेवाय. हुं राजाने समजावू, के जेथी मारा स्वामी राजाने पाप न लागे." आ प्रमाणे चितवी एक समये अवसरनो लाग आव्यो, एटले कलावतीए कोमळ वाणीथी कडं, सामी, रामराजानी उपमा सर्व स्थळे कीर्तन थाय छे. तमे ते रामराजाना स्थान उपर बेठा छो अने शुभ कर्मथी उत्तम छो, तथापि अज्ञानथी मूढ एवी मारे आपने कांईक पूछवानुं छे." राजा बोल्यो-"भद्रे, जे इच्छा होय ते खुशीथी पूछो. ते बोली, "प्रभो राजाने घणी राणीओ होय छे, तो तेओनी गति वारा प्रमाणे होय के राजानी स्वेच्छा प्रमाणे होय? राजाए कां, "तेनी गति वारा प्रमाणे थाय, एवो सहज न्याय कहेलो छे. वळी विशेषपणाने लईने तेना अनेक प्रकार पण छे. ते आवक अने खर्चनो विचार करी विवेकी पुरुषे पोतानी मेळे ज जाणी लेवा." पछी राजपुत्री बोली"प्रभो, आ मारी बहेन जे विद्याधरनी पुत्री छे, ते कुलीन अने गुणवती छे. तेणीने वारो केम मळतो नथी?" ते सांभळी राजा बोल्यो-"भद्रे तुं भद्रिक हृदयनी छे. अने गुणरहित जीवोमां पण गुण जोनारी छे. जेम बरफ बहारथी शीतल छे, पण ते अंदर दाह करनारुं छे, तेवी रीतनी ए विद्याधरनी पुत्री छे. माटे हुं तेणीने भजतो नथी, हे विचक्षण वनिता, तारे पण तेणीनो संग दासीनी जेम बहारथी करवो, पण कदि अंतरथी करवो नहि. जे माणस उत्तम जनोनी साथे संगति, पंडितोनी साथे वार्तालाप अने निर्लोभी-उदार जनोनी साथे मैत्री करे, ते दुःखी थतो नथी. जे अवंश-सारा वंश वगरनो होय पण जो ते 'गुणनी प्राप्ति करे छे, तो ते पृथ्वी उपर धर्मपणाने प्राप्त थाय छे अने सुवंश-सारा वंशवाळो होय पण जो ते गुण रहित रहे छे, तो ते दंडपणाने पामे छे. शेरीनुं जल गंगा संगथी महादेवने पण मान्य थाय छे अने दूध मदिराना पात्रना संसर्गथी लोकोमा मान्य थतुं नथी." राजा चंद्रोदरना आवां वचन सांभळी राणी कलावती बोली "स्वामी गमे तेवी ते पण तमारा आश्रयथी मारे मान्य छे. काणी दृष्टि आंख पण बीजी निर्मळ आंखना आश्रयथी माननीय थाय छे. चंद्र दोषाकर छे 1. गुण एटले सारा गुण अने पक्षे दोरी. 2. सारा वांसने जो गुण-दोरी बांधवामां आवे तो ते धनुष्यना धर्मवाळो थाय छे. नहीं तो दंड-लाकडीरूपे वपराय छे. 3. दोषाकर-दोषोनी खाणरूप पक्षे दोषा-रात्रिने कर करनार.. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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