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श्री विमलनाथ प्रभुना पूर्वभवनुं वृत्तांत मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, (बीजापर आळ चडावq) परपरिवाद, रति अरति, माया-मृषावाद अने मिथ्यादर्शनशल्य ए अढार पापस्थानोनो मारे सदा त्याग होजो. तेमां हाल तो विशेष त्याग होजो. स्वर्ग तथा मोक्षने आपनार श्री जिन धर्मनो मार्ग ढांकी दई जे कुमार्ग प्रगट करवामां आव्यो तेनी हुं हमणां आत्मसाक्षीए निंदा गर्दा करूं छु. जे में देवनी चोराशी आशातनाथी दुष्कृत कयुं होय अने गुरुनी तेंत्रीस आशातनाथी दुष्कृत कर्यु होय ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. जे देवद्रव्य, गुरुद्रव्य अने साधारण द्रव्यभक्षण थतां उपेक्षा करी होय ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. सामर्थ्य छतां अर्थने हारी जई शासननी निंदा करनाराओने में वार्या न होय ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. में धर्ममां उद्यम कर्यो न होय अन पापमां उद्यम प्रगट कर्यो होय, अथवा पापना साधन मेळव्यां होय, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. में मिथ्यात्वथी मोहित थई आ लोक अने परलोकमां कुतीर्थ- सेवन करेलुं होय; ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. जे अभक्ष्य-अनंतकाय प्रमुख अने नहीं कल्पे एवं अन्न के जल में पूर्वे भक्षण कर्यु होय, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. पृथ्वीकायमां आवीने ढेफा के लोढारूपे थई में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या होजो. अप्कायमां आवीने पाणीना पुररूपे थई जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. अग्निकायमा आवीने अनपाक तथा दावानळ रूपे थई जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. वायुकायमां आवीने वंटाळीयो के झंझावातरूपे थई जे में जीवोना समुहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. वनस्पतिकायमा आवीने धनुष्यना दंड के बाणरूपे थई जे जीवोना समूहने में दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. विकलेंद्रियोना भवोमां भ्रमण करतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारं मिथ्या दुष्कृत होजो. पंचेंद्रिय जलचर प्राणीओना भवमां भ्रमण करतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. पंचेंद्रिय स्थळचर प्राणीओना भवमां भ्रमण करतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारु मिथ्या दुष्कृत होजो. पंचेंद्रिय-आकाशचारी जीवोना भवमां भ्रमण करतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. पंदर कर्मभूमिना अने त्रीस अकर्मभूमिना भवमां भमतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. अंतरद्वीपना मनुष्योना अने व्यंतर, असुर तथा कुदेवना भवमां भ्रमण करतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, ते मारु
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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