________________
श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था जथ्थाने, केटलाएक मधुर फलोनी श्रेणीने, केटलाएक गोरूंचंदनने, केटलाएक आभूषणोना ढगलाने, केटलाएक नवीन चंदरवाने अने केटलाएक ध्वजाने एम ते शोक रहित एवा लोकमां जे कांई सुंदर वस्तु हती, ते बधी ते ते शुद्ध हृदयवाळा लोको स्वेच्छा प्रमाणे प्रभुने अर्पण करता हता केटलाएक भक्तिथी प्रभुनी उपर पवित्र छत्र धरवा लाग्या अने केटलाएक चामर वीजवा लाग्या, केटलाएक सहेजे उल्लसितभावे गीत गाता हता. केटलाएक नृत्य करता हता अने केटलाएक वाजिंत्रो वगाडता हता. "आ माणसनो दंड करो", "आ माणसने मारो" अने "आ माणसने देशमाथी काढी मूको." एवी रीते पुरोहित न्याय आपतो, परंतु प्रभु पोते एवो न्याय आपता न हता.
एक समये ते विमळप्रभुने महाभाग्यवान् पुत्र थयो. स्वजनोए तेनुं नाम अरिमर्दन पाड्यु. आ.प्रमाणे पृथ्वीनुं रक्षण करतां प्रभुने त्रीशलाख वर्षो चाल्या गया. हवे तेमनुं भोगफल कर्म क्षीण थयुं अने सुखकारक सातावेदनीय कर्म समाप्त थयुं, एटले ते सर्वज्ञ प्रभुए पोताना चित्तमां आ प्रमाणे चिंतव्यु-"हुँ हवे जे आ गृहवासमा रह्यो छु, ते हुं पोते ज मारा नेत्रो मींचीने सत्वर अंधकार करूं छु, आ पृथ्वी उपर जे अज्ञानी छे ते बालकनी जेम स्मृति वगरनो थई जे कर्म करे छे, तेने तेनुं अल्प फल मळे छे, परंतु हुं त्रण ज्ञानने धारण करनार अने उत्तम संवर सहित छतां दीक्षा लेतो नथी, ते अघटित छ. में महान् पीडाने आपनारा रोगोनी जेम आ भवमां घणा भोगो भोगव्या छतां मनना संतोषथी में तेमने छोडी दीधा नहीं. आ राज्य लक्ष्मी उत्तम पुरुषने श्रीकरी-शोभा करनारी अने छायाना जेवी छे. परंतु ते पुण्यरूपी द्रव्यने हरनारी, बहार सारवाळी अने अंतर सार वगरनी छे. आ शरीर केरडाना काष्ठनी जेम 'विपत्र रक्षण न करी शके तेवू अने लोकना स्कंध उपर उगेलुं छे, ते छेवटे अग्निना कार्यने माटे थवा छे. अर्थात् भस्म बनवानुं छे. स्त्रीओ कारागृहरूप छे अने छोकराओ माराना जेवा छे (स्वार्थ) लुब्ध अने स्तब्धमय एवा तेओने में आ संसारमा अनंती वार मेळवेला छे, तेथी ए सर्वमां सदा कृष्ण-काळी एवी तृष्णाने छोडी अने सर्व संसारने असार जाणी कामदेवनो जय करी हुं व्रतनो आश्रय करूं." आ प्रमाणे प्रभुए विचार्यु तेटलामां ज आसन कंपवाथी अवधिज्ञान वडे प्रभुना दीक्षा लेवानो योग्य एवो समय जाणी एकी साथे सारस्वत, गर्दतोय, आदित्य, वरुण, तुषित, मरुत, अरिष्ट, अव्याबाध अने वह्नि ए ब्रह्मलोक निवासी एकावतारी अने उत्तम सारवाळा गुणी नव 1. पत्र रहित पक्षे अशरण. 2. अर्थात् अग्निमां भस्म थवानं छे.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
243