________________
भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा कारणरूप एवं मिथ्या दुष्कृत ते सर्वे ए आदरथी आप्यु. एम सर्वे पोतपोतानी स्थिति प्रमाणे गर्व रहित अने उत्तम सुखवाळा थई काल निर्गमन करवा लाग्या.
___एक वखते ज्ञानथी युक्त एवा धर्मघोष नामना आचार्य घणां शिष्योना परिवार साथे उद्यानमां पधार्या. ते खबर उद्यानपाल पासेथी जाणी राजा चंद्रोदर ते उद्यानपालने द्रव्य आपी शिबिकामां बेसी गुरुने वांदवा-पूजवाने माटे आव्यो. त्यां गुरुने विधिथी वंदना करी राजा योग्य स्थाने बेठो, एटले गुरुए भव्यजनना हृदयने हर्ष आपनारी देशना आ प्रमाणे आपी
ज्यां सुधी भावनाने अनुसरी जीवो "द्रव्यने अनुसारे दान, चित्तने अनुसारे शील, बुद्धिने अनुसारे शास्त्र अने कायाने अनुसारे तप आचरे छे, त्यां सुधी तेओ हर्षथी सुखदायक एवा धर्म कर्मने कपट विना करी शके छे. ज्यां बीजी शक्ति न होय तो केवळ भावना ज करवी ते उपर बळदेव ऋषि अने रथकारना दृष्टांतो प्रख्यात छे. जे वचनथी वृत्तिथी अने लोकोनी स्तुतिथी जे भाव (जनो) दर्शावे छे, ते भाव (प्रमाणे) शक्ति छतां न करी शके तो ते भाव साचो कहेवातो नथी. - क्षितिप्रतिष्ठित नगरमां धन नामे एक श्रेष्ठी हतो. तेनी पासे द्रव्यनो समूह हतो, छतां तेनामां दान करवानो गुण न हतो. तेने विवेकी, उदार ज्ञातिमां श्रृंगाररूप, स्वभावे राज्यना आधाररूप एवा धनदत्त वगेरे पुत्रो हता, परंतु तेओ पोताना पिताना भयथी गरीबोने दान अने उत्तम जनोने मान आपी शकता न हता. कारण के पुत्रो चार प्रकारना होय छे. केटलाएक पुत्रो पिताथी चढीयाता होय छे, केटला एक पिताना जेवा होय छे, केटलाएक पिताथी उतरता हलका होय छे अने केटलाएक कुळमां अंगारारूप होय छे. एवी रीते शिष्यो पण चार प्रकारना थाय छे.
एक वखते कोई गुणवान गुरु आवी चड्या, त्यारे ते पुत्रोए विचार्यु के, "आपणे हमणां पिताने गुरुनी पासे मोकलीए; के जेथी गुरुना उपदेशनुं वचन सांभळी तेमनामां द्रव्य खर्चवानी बुद्धि उत्पन्न थाय. कारण के पृथ्वीमां गुरुओर्नु वचन ग्राह्य थाय छे. जल स्वभावे सदा नीचे मार्गे जाय छे, पण जो गुणवाळं पात्र होय तो ते जलने क्यारेक उंचे लई जाय छे." आवं विचारी ते पुत्रो ए पोताना पिताना कोई मित्रने कह्यु के, "तमे अमारा पिताने गुरु पासे लई जाओ के जेथी गुरुनुं वचन सांभळी तेमने प्रतिबोध थाय." पछी ते मित्र धनश्रेष्ठीने 1. पक्षे गुण एटले दोरी. दोरीथी बांधेलुं पात्र कृवा वगेरेमांथी जलने उंचे लावे छ
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
182