Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 238
________________ गुणदत्त साधुनी कथा ते भाषासमितिवाळा होय या न होय. कुशळ-डहापण भयुं जयणायुक्त वचन उच्चरतो मुनि वचन गुप्तिवंत कहेवाय, परंतु केवळ मौनधारी रहेनार (तथा प्रकारना लक्ष वगर) भाषासमितिने पामी न शके, एटलो तफावत छे. जे मुनि गुणदत्त साधुनी जेम वाग्गुप्तिने धारण करे छे, ते मुनिनी आज्ञाने चोर लोको पण मस्तक पर उठावे छे. गुणदत्त साधुनी कथा कोई एक नगरमां सारीज्ञातिनी विख्यातिवाळो अने गुणोनी श्रेणीथी विभूषित गुणदत्त नामे एक कुमार हतो. एक वखते ते 'वियोग रहित हतो, छतां पण पुण्यना प्रसादथी योगनो कारणरूप गुरुना उत्तम संयोग थई आव्यो तेथी ते गुणदत्त कुमारे संसार, वैभव, चतुर मातापिता अने उत्तम स्वजन वर्गने छोडी दई ते गुरु पासे व्रत ग्रहण कयु. अनुक्रमे ते गीतार्थ थयो. एक वखते परमार्थ (परोपकार) करवानी इच्छाथी स्वजनोने बोध आपवा ते मार्गे विहार करतो हतो, तेवामां कोईवार अनेक उत्तम शहेरीओने लुटनार, क्रुर हृदयवाळा, अन्यायी अने स्वेच्छा प्रमाणे आहार करनारा म्लेच्छ चोरो तेने मन्या. ते मुनिने निग्रंथ धारी तेमणे छोडी मुक्या. परंतु तेओमांथी एक मुख्यचोरे कर्वा के "आ मार्गे चोरो छे," एम तमारे कोईने कहेवू नहि. ।।११०० ।। मुनिए ते कबूल कयु. पछी तेओ केटलेक मार्गे चाल्या, त्यां पोतानो माता पिता वगैरे सर्व स्वजनवर्ग यात्रा करवाने माटे नीकळेलो ते तेमने सामे मन्यो. ते भक्तिमान् स्वजनोए विनंती करी मुनिने पाछा वाल्या एटले तेओ तेमनी साथे मार्गे पाछा चालवा लाग्या. तेवामां पेला चोरोए आवी तेमने पकड्या अने तेमनुं सर्वस्व लुंटी लीधुं. तेमनी साथे साधुओमां शिरोमणिरूप ते मुनिने जोया, एटले चोरो बोल्या के, "आपणे जे मुनिने छोडी मूकेलो ते ज मुनि आ छे. तेणे आपणा भयथी कोईने आपणी वात जणावी नथी." चोरोनां आ वचन सांभळी सर्वनी साथे पकडायेली ते मुनिनी माताए क्रोध पामी ते चोरोनी सेनाना स्वामीने का, “तमो मने सत्वर छरी आपो, जेनाथी हुं मारा पेटने चीरी तेना बे भाग करूं." चोरपतिए कडं, "शा करणथी एम करे छे?" मुनिनी माता बोली, "जेने में नवमास पेटमा राख्यो, ते आ पुत्र कुपुत्र थयो, माटे तेने धारण करनार पेटने मारे चीरी नाखवू जोईए." "ते कुपुत्र शी रीते थयो?" चोरपतिए फरीथी पूछ्युं, मुनिनी माता बोली-"ते तमो अहिं 1. संसारपक्षे (कुटुंब-लक्ष्मी प्रमुखना) वियोग रहित-संयोगी हतो. 2. योग एटले मन, वचन अने कायाना योगने साधवानुं कारण संयम. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 208

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