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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा जनने शुं तमे जाणता नथी?" ते उत्तम मुनि कायोत्सर्ग पारीने आ प्रमाणे बोल्यो-"भद्रे, तुं तत्त्वने जाणनारी छे छतां मुग्धाना जेवी केम देखाय छे? जीवने भृगुपात, अग्नि, क्षुधा, तृषा कंठपाश अने जल वगेरेथी मृत्यु पामवं, जैनागममा निषिध छे. एथी उत्पन्न थयेला मरणोवडे पुण्यवान् मनुष्यने पण लोकोमां अवगतिना जेवी व्यंतरोनी गति प्राप्त थाय छे. विद्वानोए सर्व ठेकाणे आत्महत्यानो निषेध करेलो छे. हमणां जे आ करवामां आवे छे, ते सद्बुद्धिथी रहित छे. तेथी तुं कदाग्रह छोडी दे अने जिनधर्मनुं पालन कर. जेथी तने आ लोक तथा परलोकमां अद्भुत सुख प्राप्त थाय." मुनिनां आवां वचन सांभळी राजकन्या बोली, "मुनि, मने दीक्षा आपो के जेथी मने आ संसारमा उभय लोकमांथी भ्रष्टता प्राप्त थाय नहि." मुनिए कडं, "भद्रे, तारे हजु भोग फलवाळु सुखदायक कर्म भोगवq वधारे बाकी छे, तेथी तारे दीक्षा लेवी उचित नथी. तुं गृहस्थावासमां ज रहीने शासननी प्रभाविका थईश. जे पुरुषने माटे ते आ आरंभ करेलो छे, ते पुरुष चोथे दिवसे आवशे." आ समये राजाए पूछ्युं, "भगवन्, ते चंद्रोदर कुमारने कोण लई गयेल छे अने ते शी रीते आवशे?" मुनि बोल्यां"वैताढ्य पर्वत उपर मल्लिका नामे एक नगरी छे. तेमां उत्तम विद्याओमां कुशळ एवो रत्नागंद नामे राजा छे. ते राजाने लीलावती नामे राणी छे. तेणीना उदरमांथी उत्पन्न थयेली तेने रूक्मिणी नामे एक कन्या छे. गईकाले ते राजकन्याने योग्य वयनी जोई राजा रत्नांगदे पोताना सभासदोने कह्यु के, "आ कन्याने योग्य एवो कोई वर छे के नहीं? ते कहो." त्यारे तेओए जणाव्युं के, "हाल कांपिल्य नगरमां श्रीराम राजानो चंद्रोदर नामनो कुमार छे. ते आ कन्याथी चढीयातो छे. तेमनां आवां वचन सांभळी ते रत्नांगद राजाए पोतानी पुत्रीना विवाहने माटे तारा जमाईने गजेंद्रना रूपवाळा एक विद्याधरनी पासे हरण कराव्यो छे. हृदयमां आनंद पामता एवा ते विद्याधर राजाए ते चंद्रोदर कुमारने विवाहने अर्थे आमंत्रण कयु. ते वखते स्वभावथी संतुष्ट रहेनारो अने कामदेवना जेवो सुंदर एवो ते कुमार मुनिनी जेम सार अने उदार वचन बोल्यो, "स्त्रीना योगथी जे पाणिपीडनपाणिग्रहण थाय छे, ते पुरुषोने प्राणीपीडन-प्राणीने पीडा करवारूप थाय छे, 1. भृगुपात-भैरवजंप-शिखर उपरथी पडवू. 2. गृहस्थ पुरुष एकलो एक ज कन्या साथे जोडाई (लग्न करी) शुक्लपक्षना बीजना चंद्रमानी पेरे वृद्धि पामतो जाय छे परंतु एक कन्यानो संयोग छतां एटले जोडेलुं छतां लोभवशे जो पुरुष बीजी कन्या साथे लग्न करे, तो ते कृष्णपक्षना चंद्रनी जेम दिन दिन क्षीण थतो जाय छे.
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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