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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा
ते लक्ष्मीने उत्पन्न करनार थतो नथी. (हुं 'उत्तमपुरुष छं) एवं तुं समजीश नहीं, तेम विश्वास राखीश नहीं. परंतु परनी अपेक्षाए तुं 2 मध्यम पुरुष थईने रहेजे. जो तारा वचनने आगळ करवानी तारी इच्छा होय, तो तुं मनोहर भाषण कहेवामां आगळ पडजे, पण बीजानी आगळ तो करीश नहीं. 'हुं आ विश्वमां 'सलक्षण छु' एवो गर्व छोडी देजे. कारण के एक अरिष्ट पदवडे ते बधुं निष्फळ थई जाय छे. जो तारी इच्छा 'आत्मने पद एटले तारे पोताने माटे पद धारण करवानी होय तो तुं 'सुकर्मभावनो आश्रय करजे. नहीं तो कर्त्ता परस्मैपद- एटले बीजाने माटे पद आपनार थई पडशे ज्यारे ' उपसर्ग आवे छे, त्यारे प्रायेः करीने धातुओ स्वार्थसाधक थता नथी. तेथी ए धातुओवडे प्रथम सत्क्रिया साधी लेजे. ।। २८१ ।।
लक्षणमां जे ह्रस्व होय, तेने 'दीर्घसूत्रथी ह्रस्वपणुं थाय छे. ते जोईने तेनी प्राप्तिने माटे तुं धर्म कर्ममां तेवो थईश नहिं, जे 10 स्वरहीन होय ते सर्वत्र आगळ जवाथी पृष्टे-पाछळ घोषणा करनारा ओमां क्यारेक शून्यताने प्राप्त थाय छे. तुं "वृद्धिवडे महत्ताने प्राप्त करी हृदयमां मान लावीश नहीं. कारण कें व्याकरण वगेरेमां वृद्धिथी गुणनी हानि थाय छे. 12 अंत्य वर्ण पण जो पदस्थ होय तो ते गुरुताने पामे छे अने ते अंत्य वगरनो होय तो अर्थवान् छतां पण ते नाम मात्र कहेवाय छे, पाश्चात्यने 13 गुरुता आपवाने तुं वर्ण संयोगने सेवजे. स्वरवाळो 1. व्याकरणमां पहेलो पुरुष पक्षे उत्तम प्रकारनो पुरुष. 2. व्याकरणमां बीजो पुरुष ते मध्यम पुरुष पक्षे साधारण पुरुष. 3. सलक्षण - व्याकरण भणेलो अथवा सारालक्षणवाळो. 4. अरिष्टपदना योगथी लक्षणो निष्फळ थई जाय छे. व्याकरणमां पण अरिष्टपद अशुद्धपद आववाथी वाक्य निष्फळ थई जाय छे. 5. आत्मनेपद व्याकरणपक्षे आत्मनेपद धातु . 6. सुकर्मभाव - सारा कर्म करवापणुं पक्षे व्याकरणमां कर्म विभक्ति. 7. व्याकरण पक्षे परस्मैपदी धातु. 8. धातुनी आगळ उपसर्ग लागवाथी तेना अर्थमां फेरफार थई जाय छे. पक्षे उपसर्ग अंतराय पीडा आववाथी शरीरनी धातुओ बगडे छे. तेथी ते वडे सत्क्रिया करी लेवी पक्षे सत्क्रिया क्रियापदनो अर्थ 9 लक्षणमां व्याकरणमां जे ह्रस्व स्वर होय तेने दीर्घसूत्र दीर्घ करवाना सूत्रथी ह्रस्वपणुं थाय छे, पक्षे तुं धर्म कार्यना लक्षणमां दीर्घसूत्र काम करवानी मंदता लईने ह्रस्व-टुको थई जईश नहि. 10. स्वरहीन - स्वर वगरनो वर्ण शून्य थई जाय छे. पक्षे तुं कंठना स्वर वगरनो थई शून्य थईश नहिं. 11. व्याकरणमां जे स्वरनी वृद्धि थाय छे. तेनो गुण थतो नथी पक्षे तुं वृद्धि - आबादीथी मान करीश नहीं, नहीं तो तारा गुणनी हानि थई जशे 12. पिंगळमां एवो नियम छे के जे पदने अंते अक्षर आव्यो होय ते ह्रस्व छतां गुरु गणाय छे. पक्षे तुं अंत्य छेल्लो रहीश पण जो पदस्थ पदवीमां हशे तो तारुं गौरव थशे. 13. पिंगळमां जोडाअक्षरनी पासेनो ह्रस्व अक्षर पण गुरु थाय छे. ते प्रमाणे उपदेश पक्षे पाश्चात्य - पाछळ रहेलाने गुरुता आपवाने माटे वर्ण संयोग - उंच वर्णनो समागम करजे.
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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