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पूर्णकळशनी कथा . कुमारे ते राजाने अति खेद पमाडी एक बालकनी जेम बांधी लीधो. ते काले पेला यक्षे सारा जल साथे पुष्पोनी वृष्टि करी. पछी बधा सुभटोने छूटा कर्या एटले तेओ कुमार पूर्णकलशने शरणे आव्या अने राजा नरसिंह पण तेने शरण थई गयो. राजाने तेणे बंधनमांथी छोड्यो एटले दिवसे घुवडपक्षीनी जेम ते नीचुं मुख करी उभो रह्यो. ते जोई कुमार पूर्णकलश बोल्यो, ।।१०००।। "नरसिंह, तारो रणमां पराजय थयो, तेने माटे तुं खेद करीश नहीं. सिंहिकानो पुत्र फक्त मस्तकरूपे छे, छतां ते शुं लोकोथी पूजातो नथी? तुं राज्य कर, प्रजानु रक्षण कर अने आदरथी तारा स्थानमां चाल्यो जा." आ प्रमाणे कही सत्कार पामेलो राजा नरसिंह बोल्यो, "मने रणनो भंग थयो तेने माटे शरम लागती नथी परंतु आवी तमारी आकाशगामिनी अने स्तंभन करवानी शक्ति जोतां छतां पण हुं समज्यो नहि, तेने माटे मने शरम आवे छे. हवे तमे सर्व विषयोना स्थानरूप, सद्गुणी अने अंगनी साथे मळेली मारी राज्यलक्ष्मीने अने पुत्रीने सत्वर अंगीकार करो. ते सांभळी कुमार बोल्यो, हे राजन्! हुं तमारी पुत्रीने ग्रहण करीश. कारण के लोकोमां कहेवाय छे के "पुत्री छे ते तो पारका घरने शोभावनारी छे." परंतु स्व भुजाथी मेळवेली तमारी पोतानी राज्यलक्ष्मी तो तमे ज भोगवो." राजा बोल्यो "कुमार, पृथ्वी तो खड्गनी ज छे तेथी हवे आ राज्यलक्ष्मी तो तमारी ज छे." आ प्रमाणे कही राजा नरसिंह ते कुमारने पोतानी पुत्री तथा उत्तम जयलक्ष्मी आपी तत्काळ सिंहनी जेम पोते वनमां चाल्यो गयो. पछी कुमार पूर्णकलशे रागश्री प्रियानी साथे राज्य करवा मांड्युं अने प्रजाने सुख तथा देशमां चालती अव्यवस्थानी नठारी स्थितिनो नाश करी दीधो. बे प्रकारे विषयना भोगने भोगवता कुमार पूर्णकलशने रागश्री राणीना उदरथी देवसिंह नामे एक सद्बुद्धिवाळो पुत्र उत्पन्न थयो.
____ आ अरसामां कुमारना पिताए मोकलेला केटलाएक पुरुषो प्रतिष्ठान नगरमाथी आवी आ प्रमाणे विज्ञप्ति करवा लाग्या-"सेवको तरफ वात्सल्य धरनारा आप साहेब कह्या वगर स्थानमाथी चाल्या गया, तेथी महाराजा श्रीमलयकेतु घणां दुःखी थई गया तेमां देवी विलासवतीना दुःखनी तो शी वात करवी? कारण के माता, पिताना करतां स्नेहमां हजार गणी अधिक छे. हालमां महाराजा 1. राज्यलक्ष्मी पक्षे सर्व विषयो एटले सर्व देशोथी युक्त. सारो गुण करनारी अने राज्यना सात
अंगोथी बनेली, पुत्रीपक्षेनो अर्थ तो स्फुट ज छे. 2. बे प्रकारे विषयना भोगने एटले विषय-देश अने विषय-विलासना बंने प्रकारना भोगने.
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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