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देवतत्त्व- स्वरूप अर्थात् - जेनी साथे मारे पूर्वे पतिनो संबंध हतो ते आ मजूर (दरिद्र माणस) छे अने तेनी आजे पण ए ज दरिद्र अवस्था वर्ते छे. एटले जंगलमां नदी प्राप्त थया छतां तेना निर्मळ जळमां हाथ पण पलान्या नहि.
आ गाथा सांभळी राजा बोल्यो, "प्रिया, ते ए शुं कडं?" ते बोली "आजे आ पुरुषने जोईने मने जातिस्मरण थई आव्युं छे,": "पूर्वभवे कई जाति हती?" राजाए पूछ्युं, त्यारे ते बोली, "हे राजन्, पूर्वे आ नगरमां हुं अने बीजो जे आ पुरुष वृक्षनी छाया नीचे बेठो छे, ते अमो बंने काष्ठना भारा उपाडनारा गरीब माणसो हता, अमो बंने जणा आ नगरनी नजीक रहेता हता. आ ठेकाणे काष्ठनो भारो छोडी दई विश्रांतिने माटे धरामां स्नान करी कमळ प्रमुख लई में श्री भगवान्नी पूजा करी, आने में घणुं कर्तुं तो पण आ पुरुषे प्रमादथी जिनपूजा करी नहीं. पछी आयुष्यनो क्षय थतां मृत्यु पामीने हुं राजकुळमां पुत्रीरूपे अवतरी अने तमारी पत्नी थई छु. अने ते आ पुरुष हजु पण तेवी ज स्थितिमा रह्यो छे. तेथी आ लोकमां मनुष्योने धर्म सिवाय दुःखनो क्षय थतो नथी." पछी श्रेष्ठ विचारवाळा राजाए ते पडेला गरीब पुरुषने बोलावी पूछ्युं, एटले ते पुरुषे ते प्रमाणे बधो पूर्वनो वृत्तांत कही संभळाव्यो ते सांभळी राजा देवपाले विचायु के "जेम मने आ लोकमां जिनपूजानुं फळ मन्युं छे, तेम आ राणीने पूर्वजन्ममां करेली जिनपूजार्नु फल मन्युं छे. अज्ञानी अने विशेषे करीने निर्धन एवा अमो बंनेए पूर्वे अल्प एवी पण जे द्रव्य पूजा करी हती, ते अमो बनेने राज्य आपनारी थई, तो जे प्राज्ञ पुरुषो आ लोकमां उत्कृष्ठ एवी द्रव्य पूजा करे छे. तेओ सुख वडे सुंदर एवा अच्युत देवलोकने पामे छे त्यांथी च्यवीने ते लोको आर्यदेश वगेरेनी सामग्री प्राप्त करी अने बीजा कार्यभारने सिद्ध करी छेवटे गुणी बनी सिद्धिने पामे छे. तेओ चोथे, पांचमे, छटे अथवा सातमे भवे सिद्ध थाय छे, तेओ आ लोकमां छेवटे आठमा भवनुं उल्लंघन करता नथी, सर्वथा अंतर्मुहूर्त सुधी करेली भावपूजा वडे तेज भवे सिद्धिनी प्राप्ति थाय छे, तेमां कोई जातनो संशय नथी. जे मनुष्य हृदयमां सर्वज्ञनुं ध्यान करे छे, ते सर्वज्ञ थाय छे अने जे पुरुष हृदयमां वीतरागनुं ध्यान करे छे. ते वीतराग थाय छे, जे जिनपणुं मेळववाने माटे जिन- ध्यान करे छे तेनुं कहेवू ज शुं? 'पुरुषोत्तम पण नित्ये मृत्युनो उच्छेद करवाने तेनुं ध्यान करे छे. जे साक्षर छते जिननुं ध्यान करे ते अक्षरपदनेमोक्षने पामे ज, तेने माटे आ लोक के परलोकमां कांई आश्चर्य पामवानुं नथी ते 1. पुरुषोत्तम-पुरुषोमां उत्तम पक्षे विष्णु. 2. साक्षर एटले विद्वान्. 110
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग