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शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा ते ब्रह्मलोकमां ज वास कर्यो. कारण के माणसने ईच्छित स्थान प्राप्त थया पछी ते त्यांथी एक पगलुं पण आगळ चालतो नथी. ते ब्रह्मलोकमां सुखनो अनुभव करी त्यांथी च्यवी पुनः मनुष्य जन्म पामी अने कर्मोनो क्षय करी ते अजितसेन अने शीलवती बंने शाश्वत ब्रह्म-मोक्षपदने पामशे."
"आ प्रमाणे उंचे प्रकारे शीलव्रत पाळीने अनेक विवेकी मनुष्यो स्वर्ग तथा मोक्षना संसर्गथी सुंदर बनी गया छे, एवी रीते में तमने धर्मरूपी कल्पवृक्षनी बीजी शीलरूपी शाखा कही, हवे हे सद्ज्ञानी राजा. हुं तमने तप नामनी त्रीजी शाखा कहुं छु, ते सांभळो," आ पृथ्वीमां जेटलां लौकिकतीर्थो अने लोकोत्तर तीर्थो प्रख्यात थयेलां छे, ते बधा तपथी ज थयेलां छे. वाल्मीकी अने व्यास प्रमुख जे लौकिक महर्षिओ अने हरिकेशी बळ वगेरे जे लोकोत्तर महर्षिओं हीनकुलमां उत्पन्न थयेलां छतां प्रभुता अने देवताओ वडे सेवित थई आ विश्वउपर विख्यात थई गया छे, ते तपनुंज फळ समजजो. जेओने म्लेच्छोना संसर्गथी कदि म्लेच्छता थई गई होय तेवाओने पण तपथी सारा वर्णोए वर्णन करेली शुद्धि थई जाय छे, उत्तम हृदयवाळा पुरुषोने ताप करे तेवा ब्रह्महत्यादि महा पापो लागी गया होय, तेवा पापोनो क्षय तपथी क्षण मात्रमा थई जाय छे. कुतप-नठारुं तप पण आ लोकमां मिथ्या गुणस्थाने रहेला माणसोथी पूजाय छे, तो पछी उत्तर गुणस्थाने रहेला मनुष्यो सारा तपने केम मान न आपे? ते तपना बार भेद छे अने 'द्वादश भेदवाळा सूर्यनी जेम ते दोषापह, रुचिकर अने सच्चक्र योगने करनार थाय छे. जेम चंद्रहास-खड्गवडे तेजना विलासने धारण करतो, समाभृत्-राजा कोश-खजाना वगरनो होय तो पण तप वडे विग्रह-युद्ध करवाथी सर्व शत्रुओने पूर्ण रीते जीती ले छे, तेम तपवडे विग्रह शरीर खपावतो क्षमाधारी पुरुष चंद्रहास-चंद्रना प्रकाश जेवा तेजने धारण करतो कोशहीन-निर्धन छतां पण अंतरना सर्व शत्रुओने पूर्ण रीते जीती ले छे. ज्यां सुधी देहनी अंदर अन्नपाननो प्रवेश अटकावाय नहीं, त्यां सुधी ते देहना किल्लामा रहेला कर्मरूपी शत्रओनो 1. सूर्यना द्वादश स्वरूप छे, अने दोषापह-दोषा-रात्रिनो नाश करनार, रुचिकर-प्रकाश
आपनार अने सारा चक्रवाक पक्षीना जोडलाने योग-मेळाप करनारो छे, तप पक्षे तपद्वादश भेदवाळू, दोषापह-दोषनो नाश करनार, रुचिकर-तेज अथवा श्रद्धा करनार अने सत्पुरुषोना चक्रसमूहनो योग करनार थाय छे. 2. किल्लामां भरायेला शत्रुओने माटे ज्यारे खोराक तथा पाणी अटकाववामां आवे त्यारे ते हारी जाय छे. तेथी ज्यां सुधी देहमां अन्न पाणी लेवामां आवे अर्थात् उपवास प्रमुख तप करवामां न आवे, तो कर्म रूपी शत्रुओनो विजय करी शकातो नथी.
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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