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मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा हे राजा! उपरना दृष्टांत उपरथी तमे कदाग्रहने छोडी दो. अने प्रत्यक्ष धर्मथी उत्पन्न थयेला आ प्रतीतिवाळा कुल-संतान उपर विधि भाषणवडे तमे पक्षपात करो. मनुष्योने जे सुकृत उपर पक्षपात छे, ते खरो पक्षपात छे अने जे पाप उपर पक्षपात छे, ते तो उलटो पक्षनो पात करवा रूप छे अर्थात् पक्षने तोडनारो छे. मंत्रीना एवां वचन सांभळी साक्षात् मगशैल पथ्थरना जेवो राजा फरीवार बोल्यो, "मंत्री, कदी तने 'घुणाक्षर न्यायथी एकवार संपत्ति प्राप्त थई, तेथी तुं एवो गर्विष्ट थई गयो छे के जे मने पण शीखामण आपे छे अने तेमां कहे छे के, "तारी शिक्षाथी हुं आटली समग्र समृद्धि पाम्यो छु." मंत्री तुं कहे छे के, "मने कामकुंभ वगेरेनी प्राप्ति धर्मथी थई छे." पण ते वातमां साक्षी कोण छे? कदि तुं कोइ छळ के बळ करीने आ संपत्तितो नथी लाव्यो? हवे जो तुं तारा घरसर्वस्व मने आपी फक्त तारी स्त्रीने साथे लई चाल्यो जा अने फरीवार तेवी बीजी संपत्ति लाव, तो हुं तने अने धर्मना फलने सत्य मानु" मंत्री बोल्यो, "हे राजा, भले तेम करूं" आ वृत्तांत पुरोहितना जाणवामां आव्यो, एटले सर्व शास्त्रोमां प्रवीण एवा पुरोहिते आवी राजाने आ प्रमाणे आगळ उपर हितकारी एवां वचनो कह्यां, "हे राजा! नास्तिक पुरुषो पण प्रत्यक्ष प्रमाणने माने छे, तो तमे क्षमाभृत्राजा थइने पण धर्मर्नु प्रत्यक्ष प्रमाण केम मानता नथी? हे पृथ्वीपति! जो तमे हजुपण धर्मने मानशो, तो कांइ बगडी गयुं नथी, तेथी उलटुं सत्पुरुषोमां तमाएं कांइक महत्त्व थशे. अविबुध संपूर्ण अने सूत्रधारनी समीप रहेल होय, पण जो तेनी प्रतिष्ठा थई न होय, तो ते सुमनसथी पूजातो नथी. जे माणस पोतानुं पाणी छोडे, तेने कोई सशो के मित्र होतो नथी. कमळने ते (पाणी)नो त्याग करवाथी 'मित्र पण अमित्र थई पडे छे. अमृतना सागरनुं अत्यंत मथन करवाथी घणुं उग्र एवं कालकूट-झेर उत्पन्न थयुं हतुं. जेनुं पान करीने महेश-महादेव नीलकंठपणाने प्राप्त थयो. तेथी हे राजा, तमे मंत्री सुबुद्धिने जे विदेश जवानी आज्ञा आपवा इच्छो छो, ते सारं थतुं नथी. दुर्लभ एवा ते मनुष्य रत्नने तो अहिं ज राखवा यत्न करो. दैत्यरूपी शत्रुओए मथन करीने रत्नोना समूह लई लीधो, ते पछी 1. घुण नामनो एक कीडो अजाण्ये लाकडामां अक्षर कोतरी काढे छे. तेवी रीते. 2. क्षमापृथ्वी अथवा क्षमागुणने धारण करनार. 3. विबुध-देव संपूर्ण प्रतिमावाळा होय अने ते सुत्रधार-कारीगरनी पासे रहेल होय, पण जो तेनी मंदिरमा प्रतिष्ठा थई न होय तो ते सुमनस-पुष्पोथी अथवा विद्वानोथी पूजाता नथी. पक्षे विबुध-विद्वान् संपूर्ण विद्यावाळो अने सूत्रधारनी पासे रहेलो होय पण जो तेनी प्रतिष्ठा-आबरू वधी न होय तो तेने सुमनस सारा पुरुषो पूजा-मान आपता नथी. 4. मित्र-सर्य, अमित्र-शत्र.
श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग