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दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा जोवाथी, ७. धर्म कर्म (पुन्य)थी, ८. पापथी अने ९. देवतादिकना उपदेशथी एम नव प्रकारे संक्षेपथी स्वप्न उत्पन्न थाय छे. तेमां पहेला छ प्रकारे उत्पन्न थयेला सर्व स्वप्नो निरर्थक छे. अने पाछळना त्रण प्रकारे उत्पन्न थयेला स्वप्नो शुभअशुभ फलने आपनारा छे. रात्रिने पहेले पहोरे आवेलुं स्वप्न एक वर्षे फल आपे छे, बीजे पहोरे आवेलुं स्वप्न आठ मासे फल आपे छे, त्रीजे पहोरे आवेलुं स्वप्न त्रण मासे फल आपे छे, चोथे पहोरे आवेलुं स्वप्न एक मासे फल आपे छे, अरुणोदये आवेलं स्वप्न दश दिवसे फल आपे छे अने सूर्योदय वखते आवेलू स्वप्न तत्काल शुभाशुभ फल आपे छे. जे माला स्वप्न एटले ऊपरा ऊपर स्वप्न जोवामां आवे छे. ते मलमूत्र वगेरेना पीडाथी उत्पन्न थाय छे तेथी ते निश्चे कांई पण फल आपनाएं थतुं नथी. जे प्रथम शुभ स्वप्न आवे अने पाछळथी अशुभ स्वप्न आवे अथवा पहेलं अशुभ अने पाछळथी शुभ स्वप्न आवे तो जे पाछळy स्वप्नुं आवे ते प्रमाणे फल मळे छे. एटले पहेलुं स्वप्न निरर्थक थाय छे. स्वप्नामा वृक्ष, बळद, हस्ती, पर्वत, महेल अने अश्व उपर चडवा- थाय, विष्टानो लेप थाय, रुदन अने मरण थाय, ते स्वप्न शुभ गणाय छे. जे माणस स्वप्नामां सुवर्ण, राजा, हस्ती, अश्व, बळद अने गायने जुवे छे, ते माणसने कुटुंबमां उत्तम प्रकारनी वृद्धि थाय छे. जो स्वप्नामां तांबूल, मोती, शंख, वस्त्र, दही, चंदन, कुंद तथा बोरसलीना पुष्प अने कमळ जोवामां आवे तो धननी वृद्धि थाय छे. जे माणस स्वप्नामां महेल उपर, कमळना पत्र उपर अथवा सरोवरमां बेसी भोजन करे अने बे भुजाथी समुद्रने तरी जाय ते माणस राजा थाय छे. जे स्वप्नामां कन्या, छत्र, पाकेलुं फल, दीवो, अन्न एटले भोग्य वस्तु (भातओदन) मोटी ध्वजा अने अन्न मेळवी शके, ते माणसने चिंतवेला कार्यनी सिद्धि थाय छे. जे मनुष्य स्वप्नामां उपानह (पगरखां) चाखडी अने निर्मल खड्ग जुवे छे, तेने ग्रामांतर जवू पडे छे. जे स्वप्नामां प्रथम वहाण उपर चडे अने पछी ते वहाण भांगी पडतां उतरी पडे; ते माणसने मुसाफरी करवी पडे छे अने मुसाफरीमाथी घणुं द्रव्य लईने ते पाछो आवे छे. स्वप्नमां जेना दांत पडी जाय अथवा मुखमां सडी जाय तेने धननो क्षय थाय अने तेना शरीरमा पीडा उत्पन्न थाय छे. जो स्वप्नमां शय्या अने द्वारनी भुगळ (आगळो) भांगे तेवू जोवामां आवे, तो ते पुरुषनी स्त्री- मरण थाय छे अने जो स्वप्नामां अंगनुं छेदन जोवामां आवे, तो माता, पिता अने पुत्रनो क्षय थाय छे. जो स्वप्नमां सांढडी अने भेंस उपर बेसी दक्षिण दिशामां जवानुं देखाय तो देहमां व्याधि उत्पन्न थाय छे अने
श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग
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