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पद्मसेन राजानुं चरित्र अने कर्मनो संयोग अनादि छे. जेम अग्निना संयोगथी सुवर्ण मृत्तिकामांथी जुईं पडे छे, तेम ध्यानरूपी अग्निना बळथी जीव कर्मथी जुदो पडे छे. आ जीव प्राये करीने कायनी स्थिति-मर्यादावडे अनंत उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काळ सुधी निरंतर वनस्पतिमां रहे छे. त्यां रही ते अनंत पुद्गळ परावर्तोंने पूरे छे ते पुद्गल परावर्तो द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भाव-एवा भेदोथी चार प्रकारना छे. तेमांथी ते अव्यवहार राशिनो जीव अकाम निर्जराना योगवडे मांड मांड बहार नीकळी अनंती उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी कालसुधी बादर निगोदमां रहे छे. पृथ्वीकायादिकमां असंख्याती उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळ सुधी रहे छे. विकलेन्द्रियोमां संख्याता वर्षो सुधी अने पंचेन्द्रियोमा सात आठ भवो (१००० सागरोपम झाझेरो. परंतु पंचेन्द्रिय तिर्यंच अने मनुष्यनी अपेक्षाए सात पूर्व कोटि अने त्रण पल्योपम उत्कृष्ट आयुष्य सात आठ भव- होय छे.) सुधी रहे छे. ए रीते सर्वे प्राणीओनी उत्कृष्ट कायस्थिति जाणवी. त्यारपछी ते ते कायवर्ती जीवोनुं अन्यकायमां परार्वतन थाय छे-व्यवहारराशिमां आवेला जीवोनी आ स्थिति कही छे. अव्यवहारराशि जीवोनी तो निगोदमां ज सर्वदा स्थिति जाणी लेवी. पृथ्वी प्रमुख पांचे सूक्ष्म जीवो समस्त जगतमां वर्ते छे ज. परंतु सूक्ष्म वनस्पतिना जीवो सूक्ष्म निगोद संज्ञा अंकित जाणवा. बादर (स्थूल) पृथ्व्यादिक जीवो त्रण भुवनमां यथास्थाने होय छे. बादर निगोद संज्ञा तो फक्त साधारण वनस्पति कायने ज जाणवी, एक श्वासोश्वास जेटला कालमां १७ करतां अधिक भव निगोदना थवा पामे. बाकी पृथ्वीकायर्नु उत्कृष्ट आयुष्प २२ हजार वर्षमुं, अप्कायर्नु सात हजार वर्षनुं अने वनस्पति, दश हजार वर्षनुं जाणवू. वायुकाय, त्रण हजार वर्षमुं, अग्निकायर्नु त्रण दिवस, तथा बे इन्द्रियनुं बार वर्षनु उत्कृष्ट आयुष्य समजवू.
तेइंद्रियजीवनी भवस्थिति ओगणपचास दिवसनी तथा चउरिद्रिय जीवनी छ मासनी अने पंचेंद्रिय जीव त्रण पल्योपमनी भवस्थितिवाळा होय छे. एम विद्वानो ए जाणवू. अने देवता तथा नारकी जीवोनी भवस्थिति तेत्रीश सागरोपमनी छे. एवी रीते जीवोनी उत्कृष्ट भवस्थिति आगममां कहेली छे. देवता तथा नारकी जीवोनी भवस्थिति जघन्यपणे/दशहजार वर्षनी छे अने ते सिवाय बीजा जीवोनी भवस्थिति जघन्यपणे अंतर्मुहूर्त्तनी छे. वारंवार स्थिति अने गमनागमन करतो जीव सर्व मळीने चोराशी लाख जीवायोनिने पूरी करे छे. ते बधी जीवायोनिओमां प्राणीओने सर्व प्रकारनी आशाओने पूरनारो अने दश द्रष्टांतोथी दुर्लभ एवो मनुष्य भव छे. ।।१३६।। तेमां पण वृक्षोनी जेम कल्पवृक्ष अने मणिओमां जेम चिंतामणि तेम अनार्यदेशोनी बहुलताने लइने आर्यदेश प्राप्त थवो दुर्लभ छे. तेमां पण धर्मकार्योने करावनारा सारा कुलनी प्राप्ति थवी दुर्लभ छे. कारण के मनुष्योने
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श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग