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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका प्रकार का ( चरित्तायारो ) चारित्राचार ( परिहाविदो) का खंडन किया हो तो ( इच्छामि ) मैं उस दोष की आलोचना करने की इच्छा करता हूँ।
( तत्थ ) उस तेरह प्रकार चारित्राचार में ( पाणादिवादादोवेरमणं ) जीवों के प्राणों के व्यतिपात से विरक्ति रूप ( पढमे महव्वदे ) प्रथम अहिंसा महाव्रत है ( से ) उस व्रत में ( पुढविकाइया जीवा ) पृथ्वीकायिक जीव ( असंखेज्जासंखेज्जा ) असंख्यातासंख्यात ( आउकाइया जीवा ) जलकायिक जीव ( असंखेज्जासंखोज्जा ) असंख्यातासंख्यात ( तेउकाइयाजीवा ) तैजस/अग्नि कायिक जीव ( असंखेज्जासंखेज्जा ) असंख्यातासंख्यात ( नाउकाइया जीवा ) वायुकायिक जीव ( असंखेज्जासंखेज्जा ) असंख्यातासंख्यात ( वणप्फदिकाइया जीवा ) वनस्पतिकायिक जीव ( अणंताणता ) अनन्तानन्त ( हरिआ ) हरित सचित्त ( बोआ) बीज ( अंकुरा ) अंकुर ( एदेसि ) इनका ( छिण्णा ) छेदन { भिण्णा ) भेदन ( नदातणं । उत्तान ( परिदावणं ) परितापन ( कदो) मैंने किया हो ( वा ) अथवा ( कारिदो ) कराया हो ( वा ) अथवा ( कीरंतो समणुमण्णिदो ) करने वाले की अनुमोदना की हो ( तस्स ) उस संबंधी ( मे ) मेरे ( दुक्कडं ) सभी पाप ( मिच्छा ) मिथ्या होवें ।
भावार्थ-हे भगवन् ! अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह रूप पाँच व्रत, ईर्या, भाषा एषणा, आदान-निक्षेपण, व्युत्सर्ग पाँच समिति
और मन, वचन, काय, गुप्ति इस प्रकार तेरह प्रकार का जो चारित्र है उसकी मेरे द्वारा अवहेलना, उसका खंडन किया गया हो तो मैं दोषों की आलोचना करने की इच्छा करता हूँ।
हे प्रभो ! अहिंसा महाव्रत की आराधना में एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिकादि जीवों की विराधना की हो, कराई हो, या करने वाले की मेरे द्वारा अनुमोदना हुई हो तो मेरा पाप मिथ्या हो।
बे-इंदिया जीवा असंखेज्जा-संखेमा, कुक्खि-किमि संखखुल्लय, वराड़य, अक्ख-रिष्ट्रय-गण्डवाल-संबुक्क सिप्पि, पुलविकाइया एदेसि उद्दावणं परिदावणं विराहणं उवघादो कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणु-मण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कर।