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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
सिद्ध-भक्ति तव-सिद्धे णय-सिद्धे संजम सिद्धे चरित्त-सिद्ध य ।
णाणम्मि दंसम्म य सिद्धे सिरसा णमंसामि ।। २।।
अन्वयार्थ ( तवसिद्धे ) तप सिद्ध ( णय सिद्धे ) नय सिद्ध (संजमसिद्धे ) संयम सिद्ध ( णाणम्मि ) ज्ञान से ( य ) और ( दसणम्मि ) दर्शन से होने वाले ( सिद्धे ) सब सिद्धों को ( सिरसा ) मस्तक झुकाकर (णमस्सामि ) नमस्कार करता हूँ। ____ भावार्थ यद्यपि सभी सिद्ध यथाख्यातचारित्र व केवलज्ञान पूर्वक ही मुक्ति को प्राप्त होते हैं अत: सभी सिद्धों में गुण अपेक्षा कोई भेद नहीं है, तथापि भूतप्रज्ञापन नय की अपेक्षा ही ये तपसिद्ध, नयसिद्ध, संयमसिद्ध
आदि भेद हैं अर्थात् यथाख्यातचारित्र के पहले किस-किस चारित्र को प्राप्त किया, तथा केवलज्ञान के पूर्व किस-किस ज्ञान को प्राप्त किया उस अपेक्षा सिद्ध भगवन्तों में भेट गया जाला है।
"अञ्चलिका" इच्छामि भंते ! सिद्धभक्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचे सम्मणाण सम्मदंसण-सम्मचरित-जुत्ताणं, अट्ठविह-कम्म-विष्ण-मुक्काणं, अष्टगुणसंपण्णाणं लोय-मत्थयम्मि पट्टियाणं, तव-सिद्धाणं, णय-सिद्धाणं, संजम-सिद्धाणं, चरित्त-सिद्धाणं अतीताणागद-वट्टमाण-कालत्तय-सिद्धाणं, सव-सिद्धाणं णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वंदामि णमस्सामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ घोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिन-गुण संपत्ति होउ मज्झं।
अन्वयार्थ ( भंते ) हे भगवन् ! मैंने ( सिद्धभक्ति काउस्सागो कओ) सिद्धभक्ति का कायोत्सर्ग किया है ( तस्सालोचेउं ) उसकी आलोचना करने की ( इच्छामि ) इच्छा करता हूँ । ( सम्मणाण ) सम्यक्ज्ञान ( सम्म दंसण ) सम्यक्दर्शन ( सम्मचरित्तजुत्ताणं ) सम्यग्चारित्र से युक्त ( अट्ठविहकम्म-मुक्काणं ) ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों से मुक्त ( अट्ठगुणसंपण्णाणं ) सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से युक्त/सम्पत्र ( उडलोयमत्थयम्मि) ऊर्ध्वलोक के मस्तक पर ( पयट्ठियाणं ) विराजमान ( तवसिद्धाणं ) तप से सिद्ध ( णयसिद्धाणं) नय से सिद्ध ( संजमसिद्धाणं ) संयम से सिद्ध