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तत्त्वार्थसार उत्तराधिकारी थे। विशानन्दी के बाद मल्लिभूषण और उनके बाद लक्ष्मीचन्द्र भट्टारक हुए । लक्ष्मीचन्द्र गुर्जर देशो सिंहासनके भट्टारक थे । श्रुतसागर संभवतः पट्टपर अधिछित नहीं हुए। यह बहुश्रुत विद्वान थे। आपके बनाये हुए ग्रन्थों में कुछ के नाम इस प्रकार है
१. यशस्तिलाचम्विका २. तत्त्रावृत्ति ३.औदार्यचिन्तामणि ४. तत्त्वत्रयप्रकाशिका ५. जिनसहस्रनामटीका ६. महाभिषेकटीका ७. षट्प्राभृतटोका। इनके सिवाय व्रतकथाकोप आदि अनेक ग्रन्थ है । आप १६ वीं शताब्दीके विद्वान् है।' अमृतचन्द्र सूरि
तत्त्वार्थसारके कर्ता श्री अमृतचन्द्र सुरि हैं। यह संस्कृत भाषाके महान विद्वान तथा अध्यात्मतत्त्रक अनुपम ज्ञाता थे । कुन्दकुन्द स्वामी के समयसार, प्रवचनसार और पञ्चास्तिकाय ग्रन्थोंपर पाण्डित्यपूर्ण भाषा, टीकाएँ लिखकर इन्होंने कुन्दकुन्दस्वामीके शार्टको पकट मिशा है तथा उनकी निम्मत पताको पुनरुज्जीवित किया है । अमृतचन्द्रस्वामी जहाँ कुन्दकुन्दस्वामीके निश्चयनयप्रधान ग्रन्थों की व्याख्या करते हैं वही वे उन व्याख्या ग्रंथोंके प्रारम्भमें ही अनेकान्तका स्मरणकर पाठकोंको सचेत करते हैं कि अनेकान्त ही जिनागमका जीव-प्राण है-उसके विना यह निर्जीव-निष्प्राण हो जाता है। समयसारके प्रारम्भमें ही आपने लिखा है
अनन्तधमणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः ।
अनेकान्तमयी मूतिनित्यमेव प्रकाशाताम् ।। अर्थात् जो अनन्त धर्मोसे युक्त शुद्ध आत्माके स्वरूपका अवलोकन करती है ऐसी अनेकान्तरूप मूर्ति नित्य ही प्रकाशमान हो । प्रवचनसारके प्रारम्भमें लिखा है
हेलोल्लुप्तं महामोहतमस्तोमं जयस्यदः ।
प्रकाशयजगत्तत्त्वमनेकान्तभयं मह ॥ अर्थात् जिसने महामोहरूप अन्धकारके समूहको अनायास ही लुप्त कर दिया है तथा जो जगस्के तत्वको प्रकाशित कर रहा है ऐसा यह अनेकान्तरूप तेज जयवंत प्रबर्त रहा है। पञ्चास्तिकायके प्रारम्भमें कहा है
दुनिवारनयानीकविरोषध्वंसनौषधिः । ___स्यात्कारजीविता जीयाजमी सिद्धान्तपतिः ।। अर्थात् जो दुनिबार नमसमूहके बिरोधको नष्ट करने के लिये औषवस्वरूप है ऐसी, स्यात्कारसे जीवित जिनेन्द्र भगवानकी सिद्धान्तपद्धति सदा जयवंत रहे ।
१. देखो, 'जनसाहित्य और इतिहास' वितीय संस्करण पृष्ठ ३७५ -