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प्रस्तावना
लेण्या योगप्रवृत्तिः स्यात्कषायोदयरजिता । भावसो व्यसोऽङ्गास्यविः षोडोभयो तु सा ॥ १८४ ॥ षडलेश्याङ्गा मतेऽन्येषां ज्योतिष्का भौमभावनाः ।
कापोतमुद्रगोमूत्रवर्णलेश्यानिलागिनः ।। १९० ॥ इस इलोकफो भास्फरनन्दिने 'तदुक्तं सिद्धान्तालापे' इन शब्दोंके साय उद्धृत किया है। इसी प्रकार डड्ढाने मी 'इति सिद्धान्तालापे' ऐसा लिखा है ।
लेश्याश्चतुर्ष षट् षट् व तिस्त्रस्तिस्त्रः शुभास्त्रिषु । गुणस्थानेषु शुक्लका षटसु निर्लेश्यमन्तिमम् ॥ १९५ ।। आद्यास्तिस्रोऽप्यपर्याप्तेश्वसंलपेयाब्बजीविषु । लेश्याः क्षायिकसष्टौ कापोता स्माजघन्यका ।। १९६ ।। षण नतिर्थक्षु तिस्रोग्यास्तेष्वसंख्यातजीविषु ।
एकाक्षविकलासंशिष्याचं लेझ्यात्रयं मतम् ।। १९७ ॥ इसी तरह चतुर्थाध्यायके २२वें सूत्रमें भी निम्नलिखित दो पद्य उद्धत किये है
सौधर्मशानयोः पोता पीतापने द्वयोस्ततः । कल्पेषु षट्स्वतः पद्या पपाशुषले ततो द्वयोः ।। आनतादिषु शुक्लातस्त्रयोदशसु मध्यया।
चतुर्दशसु सोत्कृष्टानुदिशानुप्तरेषु च ।। इन अवतरणोंसे यह सुसिद्ध है कि भास्करनन्दि, डढासे पीछे हए है । भारतीय ज्ञानपोठ वाराणसीसे प्रकाशित पञ्चसंग्रहमें प्राकृत पंच संग्रह सुमति कौतिकृत संस्कृतटोकाके साथ छपा है । यह संस्कृत टीका सुमतिकोतिने वि० सं०१६२० में बनाई है। पश्चसंग्रहके संपादक श्रीमान पं० हीरालालजी शास्त्रीने उसकी प्रस्तावनामें लिखा है कि संदृष्टियोंकि मिलानसे प्रतीत होता है कि श्री हड्ढापर सुमतिकी तिकी संस्कृतटीकाका प्रभाव मालूम होता है। इससे सिद्ध होता है कि भास्करनन्दिका समय डड्वासे परवर्ती है । परन्तु यह निर्णायक अभिमत नहीं है क्योंकि इसके विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि संस्कृत टीकाकार इड्डासे प्रभावित हों । भास्करनन्दिका बनाया हुआ एक 'ध्यानस्तय' नामका ग्रंथ भी है जो १०. श्लोक प्रमाण है तथा जैनसिद्धान्तभास्कर भाग १२ किरण २ में प्रकाशित हुआ है। इसको प्रशस्तिके अन्तिम तीन श्लोक तत्त्वार्थसूत्रकी प्रशस्तिसे प्रायः मिलते-जुलते हैं। श्रुतसागर
तत्त्वार्थवृत्तिके कर्ता श्रोश्रुतसागरजी मूलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणम तुए हैं। इनके गुरुका नाम विद्यानन्दी था। इन्होंने अपनैको बह्म श्रुतसागर या देशति श्रुतसागर लिखा है। विद्यानन्दी देवेन्द्रकोसिके और देवेन्द्रकोति पयनन्दोंके शिष्य एवं