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(६०)
भूख. ऊपरसें नीचे आनेको दिल बिलकुल कबूल नहीं करता था, परन्तु कोई भी यात्री प्रायः ऊपर न रहनेका रिवाज होनेसें, लाचार होकर " श्रीऋषभदेवजीकी" यात्रा करके नीचे उतर आये. सायंकालका प्रतिक्रमण करके , तीर्थराजके गुण गाते हुये फिर दर्शन करनेको सूर्योदयकी आकांक्षा करते हुये सोगये. प्रातःकाल होतेही प्रतिक्रमण, प्रतिलेषणादि साधुकी क्रिया करके फिर ऊपर चढे. इसी तरांह निरंतर करते रहे. तीर्थयात्रा करके पालीताणासें विहार करके, “गोघा बंदर, "भावनगर, "वला "पछी. "लाखेणी, " लाठीधर, “बो. टाद," "राणपुर, """ चुडा, " "लींबडी." वगैरह गामोंमें विचरते हुये, सैंकडोही जिन मंदिरोंकी यात्रा करते हुये, हजारोंही श्रावकांको दर्शन व उपदेश देते हुये, फिर शहेर अहमदा. बादमें आये. जहां “ गणि श्री मणिविजयजी महाराजजीके शिष्य “गणि श्री बुद्धिविजयजी' (बूटेरायजी) महाराजजीके पास, श्री "तपगच्छ” का वासक्षेप लिया. और इनही महात्माको श्रीआत्मारामजीने, गुरु धारण किये. और शेष साधुओंने श्रीआत्मारामजीको अपने सद्गुरु धारण किये. इसवखत श्रीवुद्धिविजयजी महाराजजीने सब साधुओंके पिछले नाम, बदल दिये. जैसेंकी।
(१) श्री आत्मारामजी- श्री आनंदविजयजी. श्री विश्नचंदजी
श्री लक्ष्मीविजयजी. + श्री चंपालालजी
श्री कुमुदविजयजी. श्री हुकमचंदजी
श्री रंगविजयजी. श्री सलामत रायजी- श्री चारित्रविजयजी. श्री हाकम रायजी--- श्री रत्नविजयजी. श्री खूबचंदजी
श्री संतोषविजयजी. श्री घनैयालालजी- श्री कुशलविजयजी. श्री तुलशीरामजी
श्री प्रमोदविजयजी. श्री कल्याणचंदजी- श्री कल्याणविजयजी. श्री नीहालचंदजी- श्री हर्षविजयजी. श्री निधानमल्लजी- श्री हीरविजयजी. श्री रामलालजी
श्री कमलविजयजी. (१४) श्री धर्मचंदजी
श्री अमृतविजयजी. (१५) श्री प्रभुदयालजी
श्री चंद्रविजयजी. (१६) श्री रामजीलाल
श्री रामविजयजी. संवत् १९३२ का चौमासा, श्री “आनंदविजयजी' (आत्मारामजी) वगैरह साधुओंने शहेर अहमदाबादमें ही किया. चौमासे बाद शत्रुजय गिरनार वगैरह तीर्थोकी यात्रा करके श्री आनंदविजयजीने संवत् १९३३ का चौमासा, शहर भावनगरमें किया; चौमासे बाद "वहोरा अमरचंद, जसराज, झवेरचंद" के संघके साथ, “शत्रुजय, तलाजा, डाठा, महुवा, दीव, प्रभासपाटण, वेरावल, मांगरील, " होकर ताथयात्रा करते हुए शहर जुनागढ तीर्थ "गिरनार " की यात्रा करके शहर जामनगर में पधारे. यहांसे सघने फिर भावनगर चलनेके
+ तमबीर टेग्यो
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