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(५८) “सरहिंद, ""कुजरांवाला, " (गुजरांवाला) “रोमनगर, " " पसररु, ” “जंबुं," वगैरह बहुत स्थानोंमें अपने पक्षके श्रावक बनाये. इधर यह कारवाई देखकर, पूज्य अमरसिंहजीको घभराट होगया; और रुदन करके अपने श्रावकोंको कहने लगे कि, “ मेरे अच्छे अच्छे पढेहुये बारा चेले आत्मारामके पास चलेगये, और आत्मारामके साथ मिलकर पंजाबके सब शहरोंको बिगाड रहे हैं. इससे मेरे बाकी शेष रहेहुये चेलोंके वास्ते बड़ी मुश्किल होगी, और आहार पानी भी मिलना मुश्किल हो जावेगा. इसवास्ते इस बातका बंदोबस्त करना चाहिये. यदि तुम इस बातका बंदोबस्त न करेंगे तो, मैं इस पंजाब देशको छोडके मारवाड वगैरह देशमें जाकर, अपनी जींदगी गुजारुंगा !!" ___ तब “पटियाला " वगैरह दो तीन शहरोंके ढुंढक श्रावकोंने, पूज्य अमरसिंहजीके लिखाये मुजब, पत्र लिखकर ब्राह्मणको देकर प्रायः पंजाबके सब शहरमें भेजे, जिसमें लिखाथा कि, आत्मारामजी वगैरह जितने साधु,टुंढकमतसें उल्टी श्रद्धावाले होवे, उनको किसी भी श्रावक वंदना नहीं करे; उतरनेको जगा नहीं दे; वस्त्रपात्र नहीं दे: आहार पानी भी नहीं देना; इनका उपदेश भी नहीं सुनना; इनकेपास जाना भी नहीं; सामायिक भी नहीं करना,वगैरह यह खबर हुशीआरपुरके श्रावकोंने भी सुनी, तब" नथ्थुमल्ल" भक्त, लाला “प्रभुदयालमल्ल, आदि बहुत श्रावक कहने लगे कि, " जिसने यह पत्र भेजवायें है, इनकेवास्तेही यह बंदोबस्त है. ” और शहरोंवालोंनेभी यही जवाब दिया. संवत् १९२९ का चौमासा, श्रीआत्मारामजीने जिरामें किया. और श्रीविश्नचंदजी वगैरह साधुओंने भी, जूदे जूदे क्षेत्रोंमें चौमासा किया. चौमासे बाद सर्व साधु पूर्वोक्त रीतिसें फिरते रहें. और लाकोंको सत्योपदेश सुनाते रहे. जिससे अनुमान सात हजार (७०००) श्रावकोंने ढुंढकमत छोडके, शुद्ध सनातन जैनधर्म, अंगिकार किया. संवत् १९३० का चौमासा, श्रीआत्मारामजीने अंबाला शहरमें किया, वहां श्रीहुकमचंदजीकी प्रार्थनासें चौवीस भगवान्के चौवीस स्तवन, बडे गंभीर अर्थ, और वैराग्य रससें भरे हुए बनाये. संवत् १९३१ का चौमासा, श्रीआत्मारामजीने शहर हुशीआरपुरमें किया. इस चौमासके बाद सब साधु, लुधीआना शहरमें एकत्र हुये. तब श्रीविश्नचंदजी वगैरह साधु
ओंने श्रीआत्मारामजीको कहा कि, “कृपानाथ! जैन शास्त्रसे विरुद्ध इस ढुंढकमतके वेषमें हमको कहांतक फिरावोगे? अब तो जैन शास्त्रके मुजब जो गुरु होवे उनके पास फिरसें दिक्षा लेके, शास्त्रोक्त वेष धारण करके, “यथार्थ गुरु.” धारण करना चाहिये. तथा “श्रीशजय, उज्जयंत" (गिरनार )वगैरह जैन तीर्थों की यात्रा करायके,हमारा जन्म सफल कराना चाहिये." यह बात श्रीआत्मारामजीको भी पसंद आनेसें सब साधु शहर लुधीआनासे विहार करके, “कोटला," "सुनाम," "हांसी, "भियाणी," वगैरह शहरोंमें होकर शहर पालीमें (देश मारवाड) गये. वहां "नवलखा” “पार्श्वनाथ की यात्रा करके, “वरकाणा" गाममें श्री “वरकाणापार्श्वनाथ," "नाडोलमें" "पद्मप्रभु,7"नारलाईमें" "श्री ऋषभदेव" वगैरह(११) जिनालय, " घाणेराव ” में “ श्रीमहावीर स्वामी,” “सादडी में तथा " राणकपुर” में “ श्री ऋषभ
१ कुजरांवाला, रामनगरमें श्री “ बूटेरायजीके उपदेशसें संवेगमत प्रचलित हुआथा. परंतु पूर्वोक्त साधुओंके विचरनेसें, वे श्रावक परिपक्व होगये. । २ पसरुर और जंबुके ओसवाल प्रायः सब श्रीविश्नचंदजीके उपदेशसें श्रीआत्मारामजीकी श्रद्धावाले होगये थे. परंतु पछेिसें अशुभ कर्मके उदयसें फिर गये.
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