________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
XXVI
स्वतंत्रता संग्राम में जैन मार्ग को प्रशस्त किया था। प्रस्तुत पुस्तक में इनका परिचय दिया गया है। इनके अतिरिक्त भी और शहीद हो सकते हैं, जिनकी खोज जारी रहनी चाहिए।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में लिखा है कि - 'जब मैं विदेश जाने लगा तो मेरी माता मुझे भेजने को तैयार नहीं हुई क्योंकि उन्हें डर था कि विदेश में जाकर यह (मैं) मांसभक्षण, मदिरापान, परस्त्री सेवन करने लगेगा। सभी माँ को समझाकर हार गये। बड़ी विकट समस्या थी। तब एक जैन मुनि आये और उन्होंने मुझे इन तीनों चीजों के त्याग की प्रतिज्ञा दिलवाई, तब माँ ने मुझे जाने की आज्ञा दी।' इतना प्रभाव था जैन मुनियों का। गांधी जी के अनुसार उनके जीवन पर जिन तीन व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा उनमें श्रीमद् राजचन्द्र प्रमुख हैं। श्रीमद् राजचन्द्र जैन थे, वे शतावधानी थे तथा बम्बई में हीरे-जवाहरात का व्यापार करते थे। जब गांधी जी का झुकाव ईसाई धर्म की ओर हुआ तब श्रीमद् राजचन्द्र से उन्होंने 33 प्रश्न पूंछे। श्रीमद् राजचन्द्र के उत्तरों से सन्तुष्ट होकर गांधीजी अपने स्वधर्म में दृढ़ हो गये।
भारत वर्ष की आजादी में अमर शहीद भगतसिंह, चन्द्रशेखर, ऊधम सिंह आदि शहीदों तथा गणेश शंकर विद्यार्थी, विनायक दामोदर जैसे क्रान्तिकारियों को तो सभी जानते हैं किन्तु मोती चन्द्र शाह, उदयचंद जैन, साबूलाल जैन जैसे शहीदों और अर्जुन लाल सेठी जैसे सहस्रों क्रान्तिकारियों को कम ही लोग जानते हैं। इनका सुसम्बद्ध इतिहास लिखा जाना आज भी बाकी है। पंजाब केसरी लाल लाजपतराय की दादी जैन थीं और वे किसी साधु को भोजन कराये बिना भोजन नहीं करती थीं। गांधी जी की दाण्डी यात्रा के समय महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराभाई ने किया था।
जैन पत्रकारिता के पितामह बाबू ज्योति प्रसाद जैन, देवबन्द ने 1930 में जब 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' लेख उर्दू भाषा में 'जैन प्रदीप' में छापा तो उनकी जमानत जब्त हो गई, जैन प्रदीप की प्रतियां जब्त कर ली गईं और पत्र का प्रकाशन बन्द कर दिया गया। इसी प्रकार श्री श्याम लाल पाण्डवीय की पत्रिका
और श्री कल्याण कुमार 'शशि' की पुस्तक भी अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई थी। अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं ने आजादी के विषय में निर्भीक होकर समाचार दिये तथा कुछ ने तो स्वदेशी के विषय में विज्ञापन तक निकाले थे। जैन सन्देश, मथुरा ने जनवरी 1947 में स्वतंत्रता विषयक लगभग 100 पृष्ठीय एक विशेषांक निकाला था जो आज महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है।
पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य, पं. फूलचंद जी सिद्धान्त शास्त्री, पं. खुशालचंद जी गोरावाला जैसे जैन विद्धानों ने जेल की दारुण यातनाएं सही थीं। कहा जाता है कि 1942 में वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय के सभी छात्र बागी हो गये थे। भारतवर्ष का संविधान बनाने वाली संविधान निर्मातृ सभा में श्री रतनलाल मालवीय (जैन), श्री अजित प्रसाद जैन, श्री भवानी अर्जुन खीमजी, श्री बलवन्त सिंह मेहता और श्री कुसुमकान्त जैन ये पाँच जैन सदस्य थे। हमारे संविधान में 'जीव मात्र के प्रति दया भाव' को भारतीय नागरिकों का मूल कर्त्तव्य बताया गया है।
जैन महिलाओं ने भी आजादी के आन्दोलन में महती भूमिका निभाई थी। इस विषय में डॉ० ज्योति जैन की 'स्वराज्य और जैन महिलायें' पुस्तक काफी पहले प्रकाशित हो चुकी है। लेखक दम्पति के अनुसार लगभग पाँच हजार जैन जेल गये। सहस्राधिक पुरुष ऐसे भी हैं, जो जेल नहीं जा सके किन्तु उन्होंने आर्थिक
For Private And Personal Use Only