Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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रसृप्रस्ताङ्गसूत्रे प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजेदित्यर्थः अथ जम्बूस्वामी सुधर्मस्वामिनं पृच्छति-हे भदन्त ! (वीरो) वीरः भगवान श्री महावीरः (बंधणं) वन्धन (किं) किम् किंम्वरूपम् (आह) आह-प्रोक्तवान् (वा) वा अथवा (किं) किं प्रकारकं वस्तु स्वरूपं (जाणं) जानन् अवध्यमानः जीवः (तिउई) त्रोटयति-कर्मरन्धं विनाशयतीनि ||१|| सुधर्मास्वामी प्राह-यःकोऽपि (चित्तमंतं) चित्तवन्तं सचित्तं द्विपदचतु
___ शब्दार्थ-(चित्तमंतं) सचित्त द्विपद, चतुप्पद आदि प्राणी (वा) अथवा (अचित्त) चैतन्य रहित सोना चांदि आदि (किसामवि) तथा तुच्छवम्नु-भृसाआदि अथवा स्वल्पभी (परिगिज्झ) परिग्रह ररवकर (वा) अथवा 'अन्न' दमको परिग्रह रखनेको 'अणुजाणाइ' आजा देकर (एवं) इसप्रकार (दुक्खा) दुःससे 'णमुच्चइ' जीव मुक्त नहीं होता है ॥२॥ ____ अन्वयार्थ—पजीवनिकाय का वध करने से वन्ध होता है ऐसे आचारांग में कहे हुए बन्धन के स्वरूप को ज्ञपरिज्ञा से जानना चाहिये और जानकर आठ प्रकार के कर्मवन्धन को नष्ट करना चाहिये अर्थात् प्रत्याख्यान परिज्ञा से उसका त्याग करना चाहिये जम्बृस्वामी मुधर्मास्वामी से पूछते हैं-भगवान् ! महावीर भगवान् ने बन्धन का क्या स्वरूप कहा है ? अथवा किस प्रकार के वस्तु स्वरूप को जानता हुआ जीव कर्मवन्धन का विनाश करता है ? ॥१॥
Al:-(चित्तमंतं) सथित्त ६५६ यतु°५६ विगैरे प्राणियो (बा) मया 'अचित्तं यतन्यविनाना सानु यही विगेरे 'किसामवि' तथा तुछ वस्तु-मुसु विगैरे ॥24॥ 2314] 'परिगिज्झ' परियड रागीन (वा) अथवा 'अ' मीन परियड रामपानी 'अणुजाणाइ' माज्ञा मापान ‘एवं' मा शत 'दुक्सा' थी 'ण मुच्चइ' ०१ भुत था नथी ॥२॥
અન્વયાર્થ–છકાય જેની હિંસા કરવાથી કમને બન્ધ થાય છે. આ પ્રકારનું બન્ધનું જે સ્વરૂપ આચારાંગ સૂત્રમાં પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે તેને સપરિણા વડે જાણવું જોઈએ, તે રીતે તેને જાણું લઈને આઠ પ્રકારના કર્મબ ધનોને નાશ કરવું જોઈએ, એટલે કે પ્રત્યાખ્યાનપરિજ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરવો જોઈએ. જંબુ સ્વામી સુધર્મા સ્વામીને એવો પ્રશ્ન પૂછે છે? કે “હે ભગવન્! મહાવીર ભગવાને બન્ધનનું કેવું સ્વરૂપ કહ્યું છે ?
અથવા કયા પ્રકારના વધુ સ્વરૂપને જાણ થકે જીવ કર્મ બન્ધનને વિનાશ ४२ छ १ ॥१॥