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सूत्रकृतांग को सूक्तियां
१ सर्वप्रथम बन्धन को नमनो, आर समझ पर फिर उसे नोडो ।
२ 'यह मेरा है-वह मेग है'-इस ममत्व बुद्धि के कारण ही वाल जीव
विलुप्त होते है। : परपीडा में लगे हुए अनजानी जीव अन्धकार मे अन्धकार की ओर जा
रहे है। ४ असत् कभी सत् नहीं होता ।
५ जो अमत्य की प्रस्पणा करते हैं, वे ससार-सागर को पार नही कर
सकते। मोहमूढ मनुप्य जहा वस्तुत भय की भाशका है, वहाँ तो भय की आगका करते नही है । और जहाँ भय की आशका जैसा कुछ नही है, वहाँ भय
की आशका करते हैं। ७. जो अपने पर अनुशासन नहीं रख सकता, वह दूसरो पर अनुशासन कैसे
कर सकता है ? ८. अन्या अन्वे का पथप्रदर्शक वनता है, तो वह अभीष्ट मार्ग से दूर भटक
जाता है। है. जो धर्म और अधर्म से सर्वथा अनजान व्यक्ति केवल कल्पित तर्कों के
आधार पर ही अपने मन्तव्य का प्रतिपादन करते हैं, वे अपने कर्म बन्धन को तोड नही सकते, जैसे कि पक्षी पिंजरे को नहीं तोड़ पाता है ।