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जिनेन्द्र स्तुति
मन्दाक्रान्ता स्वर्गे वास्मिन्मनुजभवने खेचरेन्द्रास्पदे वा
ज्योतिलोंके फणिपतिपूरे नारकाणां निवासे । अन्यस्मिन्वा जिनप जनने कर्मणा मेऽस्तु सूति
भूयोभूयो भातु भरतः पादपङ्कज भक्तिः ।।२।। अर्थ-हे जिनेन्द्र | कर्मोदय के कारण मेरा जन्म चाहे स्वर्ग मे हो, इस मनुष्य लोक मे हो, विद्याधर राजाप्रो के स्थान मे हो ज्योतिर्लोक मे हो, नाग लोक मे ही, नारकियो के निवास मे हो और चाहे किसी अन्य जाम मे हो परन्तु मै इतना चाहता हूंकि आपके चरण कमलो की भक्ति भव भव मे मुझे प्राप्त होती रहे ॥२॥
शिखरिणी गृहीतं जीवानां परमहितबुद्ध यव जननं
प्रजारक्षोपाया रसमितशुभा येन कथिताः । तमोहारी ज्ञानी रविशशिनिमो यश्च जगतः ।
स शांति सर्वेम्यो दिशतु वृषभः कर्मविजयी ।।३।। अर्थ-जिन्होने जीवो के परम हित की इच्छा से ही जन्म धारण किया था, जिन्होने प्रजा को रक्षा के छह शुभ उपाय बतलाये थे, जो अज्ञानान्धकार को हरने वाले थे, ज्ञानी थे और जो