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सुभाषितमञ्जरी
हीन त्यागी का लक्षण स्वस्त्रस्य यस्तु पड्भागान् परिवागय योजयेत् । संचये तीन दशांशं च धर्मे त्यागी लघुश्च सः ॥२५॥ अर्था - जो अपने धन के छह भाग परिवार के लिये, तीन भाग संचय के लिये और दशवां भाग धर्म के लिये खर्च करता है वह हीन त्यागी है ॥२५॥
मध्यम त्यागी का लक्षण भागत्रयं तु पोष्याणे कोशार्थे तु द्वयीं सदा । पष्ठं दानाय यो युङक्त स त्यागी मध्यमो मतः ॥२५२।। अर्थ - जो अपनी आय के तीन भाग कुटुम्ब के लिये, दो भाग खजाने के लिये और छटवां भाग दान के लिये रखता है वह मध्यम त्यागी साना गया है ॥२५२॥
उत्तम त्यागी लक्षण भागद्वयीं कुटुम्बार्थे संचयार्थे तृतीयकम् । स्वरायो यस्य धर्मार्थो तुर्य त्यागी स सत्तमः ।।२५३॥ अर्थ - जो अपने धन के दो भाग कुटुम्ब के लिये, तीसरा भाग खजाने के लिये और चौथा भाग धर्म के लिये खर्च करता है वह उत्तम त्यागी है ॥२५३॥