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मुभाषितम
रासर की जिन्दा करता है, न कठोर वचन बोलता है, कोई अप्रिय बात कहता है तो उन सह लेना है, क्रोध का आश्रय नहीं लेता है, दूसरे के द्वारा रचित दोपपूर्ण काव्य को सुन कर जो गूगे की तरह चुप बैठा रहता है जो दूसरे के दोषों को छुपाता है तथा गुरखें को विस्तृत करता है वह सज्जन है। सज्जन का यही लक्षण है ।८१॥
___ महापुरुष छोटे पुरुषों पर क्रोध नहीं करते तृणानि नोन्मनयति प्रभजनो मृदनि नीचैःप्रणतानि सर्वतः । नमुनिछतानव तरून्प्रवाधने महान महन्स्वेव करोनि विक्रमम् ।।३८२॥
अर्थः- 'प्रांची सब ओर से नीचे भुके हुए तृणों को नहीं ग्वादती. ऊंचं वृक्षों को ही उखादती है सो ठीक है क्योंधि महापुरप महापुरुषों पर ही पराकम करते हैं ॥३२॥
सजनों से पृ. ची सुशोभित है अप्रियवचनदरिद्रः प्रियवचनाटय : स्वदारपरितुष्टैः । परपग्विाद निपुनः क्यविन्क्वचिन्मण्डिता वसुधा ।३३।