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सुभाषितमञ्जरी अपार पुण्य का जनक है, धीर मनुष्यों के द्वारा सदा सेवित है, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र गुणों का उत्तम पात्र है, परम पवित्र है, तथा इस लोक और परलोक मे सुख का घर है ऐसे ब्रह्मचर्य को तुम धारण करो ।।३६२॥
ब्रह्मचर्य ही श्रेष्ठ है ब्रह्मवयं भवेत्सारं सर्वेषां गुणशालिनाम् । ब्रह्मचर्यस्य भङ्गन गुणाः सर्वे पलायिताः ॥३६३॥ अर्थ.- सभी गुणी मनुष्यो मे ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है। क्योंकि ब्रह्मचर्य के भड्न होने से सब गुण नष्ट हो जाते है ॥३६३।।
ब्रह्मचर्य स्वर्ग और मोक्ष का हेतु है ब्रह्मचर्यमपि पालय सार धर्मसारगुणदं भवतारम् । स्वर्गमुक्तिगृहप्रापणहेतु दुःखसागरविलङ्घनसेतुम् ।३६४। अर्था -जो सारभूत है, धर्म आदि श्रेष्ठ गुणों को देने वाला है, संसार से तारने वाला है, स्वर्ग और मोक्षरूपी घर की प्राप्ति का हेतु है तथा दुखरूपी सागर को पार करने के लिये सेतु है ऐसे ब्रह्मचर्य का पालन करो ॥३६४॥
ब्रह्मचर्य के बिना सव व्रत व्यर्थ है ब्रह्मचर्य भवेन्मलं सर्वस्या व्रतसन्नतेः । ब्रह्मचर्यस्य भङ्ग न व्रतानि स्युर्वृथानृणाम् ॥३६॥