Book Title: Subhashit Manjari Purvarddh
Author(s): Ajitsagarsuri, Pannalal Jain
Publisher: Shantilal Jain

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Page 187
________________ सुभाषितमञ्जरी १५५ सज्जनों को अनादर से दुःख होता है अन्योक्ति न दुःख दह्यमाने मे न च्छेदे न च वर्षणे । एकमेव महादुःखं गुञ्जया सह तोलनम् ॥३६१।। अर्थ - सुवर्ण कहता है कि मुझे जलाने पर दुःख नहीं होता, काटने पर दुःख नहीं होता और घसीटने मे दुःख नहीं होता किन्तु गुमची के साथ तोला जाना यही एक मुझे सबसे बड़ा दुःख है ॥३६१।। ब्रह्मचर्य प्रशंसा ब्रह्मचर्य धारण करने की प्रेरणा संसाराम्बुधितारकं सुखकरं देवैः सदा पूजितं मुक्तिद्वारमपारपुण्यजनकं धीरैः सदा सेवितम् । सम्यग्दर्शनबोधवृत्तगुणमद्भाण्डं पवित्रं परं हयत्रामुत्र च सौख्यगेहमपरं त्वं ब्रह्मचर्य भज ॥३६२॥ अर्था:- जो संसाररूपी समुद्र से तारने वाला है, सुख को करने वाला है देवोंके द्वारा सदा पूजित है, मुक्ति का द्वार है,

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