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सुभापितमञ्जरी
१६७ अधिक कट है। 'गृहातु'- 'लेओ', इस प्रकार का वाक्य वचनो मे राजा है और 'नेच्छामि' 'मै नहीं चाहता हू' इस प्रकार का वाक्य उससे भी अधिक बडा राजा है ॥४१॥
. भिक्षुक निन्दा अनाहूताः स्त्रयं यान्ति रसास्वादविलोलुपाः । निवारिता न गच्छन्ति माक्षिका इत्र भिक्षुकाः ॥४२०॥ अर्था.- रसास्वाद के लोभी भिक्षुक मक्खियों के समान विना बुलाये स्वयं आ जाते है और हटाये जाने पर भी नहीं हटते है ॥४२०॥
याचना से क्या नष्ट होता है देहीति वचनं श्र त्या देहस्थाः पञ्चदेवताः । । नश्यन्ति तत्क्षणादेव श्रीहीधीस्मृति कीर्तयः ॥४२१॥ अर्थ- 'दहि' 'देवो' यह वचन सुन कर शरीर में रहने वाले पांच देवता- श्री, ह्री, धी, स्मृति और कीर्ति. तत्क्षण नष्ठ हो जाते है अर्थात् याचना करने वाले की लक्ष्मी, लज्जा, बुद्धि, स्मरणशक्ति और कीर्ति नष्ट हो जाती है ॥४२१॥ ___याचक के कुल मे जन्म लेना अच्छा नहीं है वर पदिबने वासो वर पाषाणपर्वते । : ... वरं नीचकुले जन्म न जन्म याचके कुले ॥४२२॥ .. . . अर्थाः- पक्षियो के वन मे रहना अच्छा, पत्थरों के पर्वत पर