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सुभाषितमञ्जरी रहना अच्छा और नीच कुल मे जन्म लेना अच्छा परन्तु याचक के कुल में जन्म लेना अच्छा नहीं है ॥४२२॥
काक और याचक में अन्तर काक आह्वयते काकान् याचको न तु याचकान् । काळयाचकयोर्मध्ये वरं काको न याचकः ॥४२३॥ अर्थ:- एक कौआ दूसरे कौओं को बुला लेता है परन्तु एक याचक दूसरे याचकों को नहीं बुलाता इस तरह कौत्रा और याचक इन दोनों मे कौश्रा अच्छा है याचक नहीं ।४२३॥
___ याचना करना अच्छा नहीं तीक्ष्णधारेण खङ्गन वरं जिह्वा विधा कृता । न तु मानं परित्यज्य देहि देहीति जल्पनम् ।।४२४॥ अर्थः- पैनी धार वाले कृपाण से जीभ के दो टुकडे कर लेना अच्छा परन्तु मान छोड कर "देहि देहि" ऐसा करना अच्छा नहीं ॥४२४॥
भिक्षुक क्या शिक्षा देता है ? द्वार द्वारमटन् भिक्षुः शिक्षयते न याचते। अदचा मादृशो मा भू देवा त्वं त्वादृशो भव । ४२५।। आय-द्वार द्वार पर घूमता हुया भिक्षुक याचना नहीं करता है किन्तु सभी को ऐसी शिक्षा देता है कि दान न देकर मेरे समान मत बनो किन्तु देकर अपने समान बनो । ॥४२५।।