________________
सुभाषितमञ्जरी
१५७ अ - ब्रह्मचर्य समस्त व्रत समूह का मूल है । ब्रह्मचर्य के भङ्ग होने से मनुष्यो के व्रत व्यर्थ हो जाते है ॥३६॥
परस्त्री सेवन का फल बन्ध धं धनभ्र श शोक ताप कुलक्षयम् । दुःखद कलह मृत्यु लभन्ने पारदारिकाः ॥३६६।। अधू-परस्त्रीसेवी पुरुष, बन्ध, वध, धननाश, शोक, संताप, कुलक्षय, दुःखदायक कलह और मृत्यु को प्राप्त होते है ।३६६
अब्रह्मचर्य से क्या नष्ट होता है ? आयुम्तेजो बलं वीर्या प्रज्ञा श्रीश्च महायशः । पुण्य सुप्रीतिमा व हन्यतेऽब्रह्मसेवनात् ॥३६॥ अर्थ :- अब्रह्म-कुशील सेवन करने से, आयु, तेज, बल, वीर्य, लक्ष्मी, विपुलयश, पुण्य और उत्तम प्रीति नष्ट हो जाती है ॥३६७।।
शीलबत शाश्वतसुख का कारण है ये शीलवन्तो मनुजा व्यतीता दृढव्रतास्ते जगत प्रपूज्याः । परत्र देवासुरमानुपेषु पर सुखं शाश्वतमप्नुवन्ति ॥३९८॥ अर्था - जो शीलवान मनुष्य हो चुके है वे अपने व्रत पर