Book Title: Subhashit Manjari Purvarddh
Author(s): Ajitsagarsuri, Pannalal Jain
Publisher: Shantilal Jain

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Page 194
________________ सुभाषितमञ्जरी "अ - रत्नत्रय के प्राप्त होने पर संसार मे मनुष्यों को सब कुछ प्राप्त हो जाता है और रत्नत्रय के चले जाने पर रत्नों का संग्रह लुट जाता है ॥४०८॥ रत्नत्रय से ही जन्म सफल होता है लब्धं जन्मफन्लं तेन सम्यक्त्वं च जीवितम् । येनावाप्तमिदं पूतं रत्नत्रयमनिन्दितम् ॥४०६।। अर्थ - उसी ने जन्म का फल पाया और उसी ने सम्यक्त्व को जीवित किया जिसने कि इस पवित्र एवं प्रशंसनीय रत्नत्रय को प्राप्त किया है । ४०६|| __ रत्नत्रय का फल सदृष्टिसज्ज्ञानतपोऽन्विता ये चक्र श्वरत्वं च सुरेश्वरत्वम् प्रकृष्टसौख्यामहमिन्द्रतां च, संपादयन्त्येव न संशयोऽस्ति अर्थ - जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् तप से सहित है वे चक्रवर्ती पद को तथा उत्कृष्ट सुख से युक्त अहमिन्द्र पद को नियम से प्राप्त करते है इसमे संशय नहीं है । ॥४१०॥ रत्नत्रयरूपी अस्त्र जयवन्त रहे रत्नत्रयं जैनं जैत्रमस्त्रं जयत्यदः । येनाव्याज व्यजेष्टाईन् दुरितारातिवाहिनीम् ॥४११॥

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