________________
सुभाषितमञ्जगे
मिश्र - समस्त विद्वानों के द्वारा निन्दनीय, दुःख एवं संताप का कारण, नरक का विषम मार्ग बन्धुश्रा के वियोग का हेतु, कुगति को करने वाला सारहीन, तथा पापस्पी वृक्ष का कन्द ऐसे समस्त अदत्तादान को तुम मुक्ति की प्राप्ति के अर्थ सदा के लिये छोडो ॥४०२।।
सबसे श्रेष्ठ अर्थ शौच है सर्वेषामेव शोचानामर्थशोचं विशिष्यते । योऽर्थेषु शुचिः स शुचि नवृद्धादिमि. शुचिः ॥४०३। अर्थः- सब प्रकार की पवित्रताओं मे धन की पवित्रता अपनी विशेषता रखती है। जो धन के विषय मे पवित्र है वह पवित्र है वृद्वावस्था आदि के कारण मनुष्य पवित्र नहीं होता। ४०३॥
__ चोरी से हानि सौजन्यं हन्यतेभ्रशो वित्रम्भम्य धृतादिपु । विपत्तिः प्राणपर्यन्ता मित्रबन्ध्यादिभिः सह । ४०४॥ गुणप्रमवसंदृब्धा कीर्ति रम्लानमालिका । लतेव दावपंश्लिष्टा सद्यः चौवेंण हन्यते ॥४॥ तच्च लोभोदयेनेव दुविषाकेन केनचित् । द्वयेन तेन बध्नाति दुरायु दुष्टचेष्टया ॥४०६॥