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मुभापितमञ्जरी
अर्थ- चोरी से सौजन्य नष्ट हो जाना है, धरोहर पाटि रखने में विश्वास चला जाता है, मित्र तथा बन्धु श्रादि के साथ प्राणान्त विपत्ति प्राप्त होती है, गुणरूपी फलो से गुम्फित कीर्तिरूपी ताजी माला दावाग्नि से झुलसी लता के समान शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। वह चोरी की आदत किमी बहुन भारी लोभ कष्ट के उदय से ही होती है। लोभ और चोरी उन दोनो से यह जीवन प्रवृत्ति द्वारा खोटी आयु का बन्ध करता है ॥४०४, ४०५, ४०६॥
रत्नत्रय प्रशंसा
रत्नत्रय के धारक ही मत्पुरुप है सम्यग्दर्शनज्ञानचाग्वित्रितयं हितम् । तद्वन्तः सर्वदा सन्तः कथयन्ति जिनेश्वराः ॥४०७।। अर्था.. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र ये नीनों ही हितकर है जो मदान नन्ति व मत्स्य है irसा जिनेन्द्र भगवान कहते है ॥१७॥
रत्नत्रय की महिमा प्राप्ते रन्ननये नाप्नं जगति मानवैः । गते रत्नत्रये लोक हारिनो रन्नसंग्रहः ॥१०॥