Book Title: Subhashit Manjari Purvarddh
Author(s): Ajitsagarsuri, Pannalal Jain
Publisher: Shantilal Jain

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Page 182
________________ १५० सुभाषितमञ्जरो कुलीन मनुष्य नीच कार्य नहीं करते बनेऽपि सिंहा गजमांसभक्षिणो, बुभुक्षिता नैव तृणांश्चरन्ति, एवं कुलीना व्यसनाभिभूता, न नीचकर्माणि समाचरन्ति । ॥३७६ ॥ अर्थ:- जिस प्रकार सिंह वन मे भी हाथी का मास खाते है भूख से पीडिन होने पर घास नहीं खाते उसी प्रकार कुलीन मनुष्य व्यसनों से युक्त होने पर भी नीच कार्य नहीं करते। सज्जन किनके वन्द्य नहीं है ? वदनं प्रसादसदनं हृदयं सदयं सुधामुचो वाचः । करण परोपकरण येषा केपां न ते बन्धाः ॥३८ ॥ मर्था - जिनका मुख प्रसन्नता का घर है, हृदय दया से पहित है, वचन अमत को झराते है और इन्द्रियां परोपकार करती है वे सज्जन किनके वन्द्य नहीं है ॥३८०॥ सज्जनों के लक्षण क्या है ? गर्व नोद्वहते न निन्दति परं नो भाषते निष्टुरं प्रोक्तं केनचिदप्रियं हि सहते क्रोधं च नालम्बते । श्रुत्वा काव्यमलक्षणं परकृतं संतिष्ठते मूकबद दोपांश्छादयते गुणान् प्रथयते चैतत्सतां लक्षणम् ।३८११

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