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सुभाषितमलगे परार्थ को नष्ट करते है वे मनुप्यों में राक्षस हैं और जो विना प्रयोजन ही दूसरों का हित नष्ट करते है वे कौन हैं यह हम नहीं जानते ॥३७३।।
महापुरुष का लक्षण प्रारम्भे सर्वकार्याणि विचार्याणि पुनः पुनः । प्रारब्धस्यान्तगमनं महापुरुषलक्षणम् ॥२७४॥ अर्था:- प्रारम्भ मे सब कार्यों का बार बार विचार कर लेना चाहिये पश्चात् प्रारम्भ किये हुए कार्य को पूरा करना चाहिये यही महापुरुष का लक्षण है ॥३७४।।
महात्माओं के प्रकृतिसिद्धगुण
द्रुतविलिम्वितच्छन्दः विपदिधैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः। यशसि चाभिरुचि र्व्यसनं श्र तो प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम
॥३७॥ अर्थः- विपत्ति मे धैर्य, ऐश्वर्य मे क्षमा, सभा मे बोलने की चतुराई, युद्ध मे पराक्रम, यश मे इच्छा और शास्त्र मे व्यसनसक्ति, यह सब महात्माओं मे स्वभाव से सिद्ध होते है ।
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