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सुभाषितमञ्जरो अर्था:- अभय, आहार, औषध और शास्त्र के भेद से विद्वान् पुरुषों ने दान को चार प्रकार का कहा है । यह दान शक्ति और भक्ति के अनुसार दिया जाता है ॥२४॥
चार दानो का फल अभीतितोऽ त्युत्तमरूपवचमाहारतो भोगविभूतिमत्वम् । भैषज्यतो रोग निराकुलत्वं श्रुतादवश्यं श्रुतकेवलित्यम् ॥२४६।। अर्थ:- अभयदान से उत्तम रूप, आहारदान से भोगों का ऐश्वर्य, औषधदान से रोग सम्बन्धी निराकुलता और शास्त्र दान से श्रृत फेवली अवस्था प्राप्त होती है ॥२४॥
. न्यायोपात्त धन का ही दान करना चाहिये दत्तः स्वल्पोऽपिभद्राय स्यादर्थो न्यायसंचितः । श्रन्यायात्तः पुनर्दत्तः पुष्कलोऽपि फलोज्झितः ।२५०। अर्था:- यदि धन न्याय संचित है तो थोड़ा दिया हुआ भी लाभ के लिये होता है और धन अन्यायोपार्जित है तो बहुत दिया हुआ भी निष्फल जाता है ।।२५०॥