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सुभाषितमञ्जरी जितेन्द्रिय ही जिनमुद्रा धारण करते हैं इन्द्रियाणि न गुप्तानि जयं कृत्वा हृदश्च यैः। जिनमुद्रां समादाय तैरान्मा वञ्चितः शठैः ॥३१६॥
अर्थ - जिन्होंने हृदय को जीतकर इन्द्रियों को सुरक्षित नहीं किया है- उन्हे स्वाधीन नहीं किया है उन मूों ने जिनदीक्षा धारण कर अपने आपको ठगा है ॥३१॥
पञ्चेन्द्रियों को जीतने वाले विरले हैं दन्तीन्द्रदन्तदलनेकविधौ समर्थाः सन्त्यत्र रुद्रमृगराजवधे प्रवीणाः । आशीविषस्य च वशीकरणेऽपि दक्षाः पञ्चाननिर्जयपरास्तु न सन्ति माः ॥३२०॥ अर्थ - इस संसार में कितने ही मनुष्य बड़े बड़े हाथियों के दात तोडने में समर्थ हैं, कितने ही प्रचण्ड सिंहों के पक्ष में निपुण हैं, और कितने ही सांपों को वश करने में चन है, परन्तु पञ्चेन्द्रियों के जीतने में तत्पर नहीं हैं ।३२०॥ ।
___ कर्म किससे डरते हैं ? एवं प्रतिदिनं यस्य ध्यानं विमलचेतसः । भीतानीव न कुर्वन्ति तेन कर्माणि संगतिम् ॥३२॥