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सुभाषितमजरी
रात्रिभोजी दुर्गति को नही देखता दर्शनागोचरीभूते सूर्ये परमलालसः । भुङ्क्ते पापमना जन्तु दुर्गतिं नावबुध्यते ॥३३४॥ अर्था:- तीव्र लालसा से युक्त पापी मनुष्य सूर्य के छिप जाने पर भोजन करता है परन्तु उससे होने वाली दुर्गति को नहीं जानता ॥३३४॥
रात्रिभोजन के दोष डाकिनीतभूतादिकुत्सितप्राणिभिः समम् । भुक्तं भवेत्तेन येन क्रियते रात्रिभोजनम् ।।३३५॥ अर्था - जो रात्रिभोजन करता है वह डाकिनी, प्रेत तथा भूत आदि निन्द्य प्राणियों के साथ भोजन करता है ।।३३।।
रात्रिभोजन के त्यागी पुरुष को उपवास का फल मिलता है मुहूर्त्तत्रिशतं कृत्वा काले याति तावति ।
आहारवर्जनं जन्तु-रूपवासफलं भजेत् ॥३३६॥ अर्थ:- जो पुरुष रात्रि के ३० मुहूर्त तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है वह उपवास के फल को प्राप्त होता है ॥३३६॥