________________
१३२
सुभाषितमञ्जरी रात्रि भोजन के लम्पटी पुरुष परभव मे क्या होते है अन्धाः कुब्जकवामनातित्रिफला अल्पायुषः प्राणिनः शोकक्लेशविपाददुःखबहुलाः कुष्ठादिरोगान्विताः । दारिद्रयोपहता अतीवचपला मन्दादराः म्युचव रात्रौ भोजनलम्पटाःपरभवे तियेच श्वभ्रादिपु ॥३३२॥ अर्था - रात्रि भोजन के लम्पट पुरुष यदि परभव मे मनुष्य होते है तो अन्धे, कुवडे, बौने, विकलाङ्ग, अल्पायु, शोकक्लेश और विषाद के दुख से युक्त, कुष्ठ आदि रोगों से सहित, दरिद्र, अत्यन्त चपल और आदरहीन होते है. तथा तिर्यञ्च और नरका मे यदि पैदा होते है तो उनके दुःख का कहना ही क्या है ? ॥३३२।।
रात्रि भोजन का दुष्परिणाम मक्षिकाकीटकेशादि भक्ष्यते पापजन्तुना । तमःपटलसंछन्नचक्षुषा पापबुद्धिना ॥३३३।। मर्थ · अन्धकार के समूह से जिसके नेत्र आच्छादित हो रहे है तथा जिसकी बुद्धि पापरूप हो रही है ऐसा पापी जीव रात्रि मे भोजन करते समय मक्खी, कीडे तथा बाल आदि हानिकर पदार्थ खा जाता है ॥३३३॥