Book Title: Subhashit Manjari Purvarddh
Author(s): Ajitsagarsuri, Pannalal Jain
Publisher: Shantilal Jain

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Page 174
________________ १४२ - सुभाषितमञ्जरी अथः:- जो संपत्ति मे विनय से नम्रीभूत रहते है, विपत्ति से गर्वरूपी पर्वत की शिखर पर चढ़ते है और ज्ञानमे मौनरूपी आभूषण से सहित है ऐसे विचित्र स्वभाव को धारण करने वाले सज्जन पृथ्वी में जयवन्त हो ॥३५६॥ महापुरुषों की एकरूपता होती है उदये सविता रागी रागी चास्तमये तथा । संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ॥३६०॥ मार्थ- सूर्य उदयकाल मे लाल रहता है और अस्तकाल मे भी लाल रहता है सो ठीक है क्योंकि संपत्ति और विपत्ति मे महापुरुषों के एक रूपता रहती है ॥३६०॥ सज्जन सब मे समान रहते है अञ्जलिस्थानि पुष्पाणि वासयन्ति करद्वयम् । अहो सुमनसां वृत्तिमिदक्षिणयो; समा ॥३३॥ अर्था.- अजलि मे स्थित फूल दोनों हाथों को सुवासित करते है सो ठीक है क्योंकि सज्जनों की वृत्ति वाम और दक्षिण ( पक्ष मे अनुकूल तथा प्रतिकूल ) पुरुषों मे समान रहती है ॥३६१॥

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