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सुभाषितमञ्जरी
अर्थ- कोयल आम के उत्तम ग्स को पीकर गर्व को प्राप्त नहीं होती परन्तु मेढ़क कीचड से मिला हुआ पानी पी कर टर टर्र करता है ३६४॥
सज्जन और दुर्जन मे अन्तर नारिकेलममाकाग दृश्यन्ते किल सज्जनाः । अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः ॥३६॥ अर्था- सज्जन नारियल के समान दिखाई देते है, और दुर्जन बेर के समान बाहर ही मनोहर रहते है ।।३६५।
सुशील मनुष्यों को कोई नष्ट नहीं कर सकता ? न मज्जयत्यम्वुनिधिः सुशीलान् , न दग्धुमीशो ज्वलदर्चिराग्निः । न देवता लवयितु समर्था विघ्ना विनश्यन्ति चिनी प्रयत्नात् ।।३६६॥ अर्था- सुशील मनुष्यों को समुद्र नहीं डुबाता है, जलती हुई ज्वालाओं से युक्त अग्नि जलाने में समर्थ नहीं है, और देवता लांघने मे समर्थ नहीं हैं, उनके विघ्न बिना प्रयत्न के ही नष्ट हो जाते हैं ॥३६६।।