Book Title: Subhashit Manjari Purvarddh
Author(s): Ajitsagarsuri, Pannalal Jain
Publisher: Shantilal Jain

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Page 175
________________ सुभाषितमञ्जरी विकार ही अच्छे बुरे की पहिचान है. न जारजातस्य ललाटचिह्न', न साधुजातस्य ललाटपमम् । यदा यदासो भजते विकारं तदा तदासौ खलु जारजातः ।३६२॥ अर्थ- जार से उत्पन्न हुए मनुष्य के ललाट पर कोई चित नहीं होता और न सज्जन मे उत्पन्न हुए मनुष्य के ललाट पर कमल होता है परन्तु जब जब वह विकार भाव को प्राप्त होता है तब तब पता चलता है कि वह जार से उत्पन्न है ॥३६२॥ कुलीन ,पुरुष के लक्षण क्या है ? न च हसति नाभ्यसूयति न परं परिभवति नाप्रियंवदति । न क्षिप्यां कथां कथयनि लक्षणमेतत्कुलीनस्य ॥३६३॥ अर्घा:- न दूसरे की हंसी करता है, न ईर्ष्या करता है, न दूसरे का अनादर करता है, न अप्रिय वचन बोलता है, और न आक्षेप के योग्य कथा कहता है यह कुलीन मनुष्य के लक्षण हैं ॥३६३॥ सज्जन और दुर्जन की विशेषता । दिव्यमानरसं पीत्वा गर्व नायाति कोकिलः । पीत्वा कर्दमपानीयं मेको वटवटायते ॥३६४॥

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