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१०६ सुभाषितमञ्जरी
संसार मे कृतकृत्य कौन है ? लब्ध्वा जन्म कुले शुचौ नरवपुः शुद्धाशयं पुण्यतो वैराग्यं च करोति यः शुचितपो लोके स एकः कृती। तेनैवोज्झितगौरवेण यदि वा ध्यानामृतं पीयते प्रासादे कलशस्तदा मणिमयो हैमे समारोपितः ॥२६३॥
अर्थ - पुण्योदय से पवित्र कुल मे जन्म, मनुष्य शरीर, निर्मल अभिप्राय और वैराग्य को प्राप्त कर जो निर्दोष तप करता है संसार मे वही एक कृतकृत्य है। यदि वही कृतकृत्य मनुष्य अहंकार छोड़ कर ध्यानरूपी अमृत का पान करता है तो समझना चाहिये कि उसने सुवर्णमय महल के ऊपर मणिमय कलशा चढ़ाया है ॥२६३॥
श्रावक का लक्षण देवशास्त्रगुरूणां च भक्तो दानदयान्वितः। मदाष्टव्यसनहीनः श्रावकः कथितो जिनैः ॥२६४॥ अर्धा - जो देव शास्त्र और गुरु का भक्त हो, दान और दया से सहित हो तथा श्राठ मद और सात व्यसनों से रहित हो जिनेन्द्र भगवान ने उसे श्रावक कहा है ॥२६४॥