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सुभाषितमञ्जरी अर्थ:- जिस प्रकार अग्नि की विधि से तपाया हुआ सुवर्ण शीघ्र शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार कर्मरूपी कलङ्क से युक्त आत्मा उत्तम तपरूपी अग्नि के द्वारा निश्चित ही शुद्ध हो जाता है ॥ २६७ ॥
चित्त की शुद्धि चित्त से होती है जलेन जनितः पङ्को जलेन परिशुद्धयति । चित्तेन जनितं पाप चित्तेन परिशुद्धयति ॥२६८॥ अर्था:- जिस प्रकार जल से उत्पन्न कीचड़ जल से दूर होता है उसी प्रकार चित्त से उत्पन्न पाप चित्त से-अच्छे विचार से दूर होता है ॥२६॥
तप की शुद्धि सब शुद्धियों से श्रेष्ठ है . सर्वासामेव शुद्धीनां तपःशुद्धिः प्रशस्यते । . . तपःशुद्धिप्रशुद्धानां किङ्करास्त्रिदशा नृणाम् ॥२६६।। अर्थः- तप की शुद्धि सब शुद्धियों मे प्रशस्त है क्योंकि तप की शुद्धि से शुद्ध मनुष्यों के देव भी किङ्कर होते है ॥२६॥
तापस तप से शुद्ध होते है वस्त्राद्याः समला यद्वद् धौता शुद्धन्ति वारिणा । तपोरूपेण तोयेन तद्वच्छुध्यन्ति तापसाः ।।२७०।।