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सुभाषितमजरो अर्थ:- जो कर्मरूपी पर्वत को गिराने के लिये वन है, स्वर्ग और मोक्ष का सुख प्राप्त कराने के लिये मन्त्र है, कामेन्द्रिय का दमन करने वाला है, शुभ कार्यों का बीज है तथा अभिलषित पदार्थों को देने वाला है ऐसे तप को तू कर।
जैनी दीक्षा कैसे प्राप्त होती है ? बोधिलाभाच्च वैराग्यात्काललब्ध्यादिसंश्रयात् । जैनी दीक्षां ससंस्कारां द्विजः संप्राप्तुमर्हति ॥२८३ अर्था:- रत्नत्रय की प्राप्ति से, वैराग्य से तथा काललब्धि आदि के आश्रय से द्विज-ब्राह्मण क्षत्रीय और वैश्य संस्कार से युक्त जैनी दीक्षा प्राप्त होने के योग्य है ॥२८३।।
भोगेच्छा से जन्म व्यर्थ होता है जन्मेदं वन्ध्यतां नीतं भवभोगोपलिप्सया। काचमल्येन विक्रीतो हन्त चिन्तमणिर्गथा ॥२८४] अर्थ- मैंने संसार सम्बन्धी भोगों की इच्छा से इस जन्म को निष्फल कर दिया। खेद है कि काच के मूल्य से चिन्तामणि रत्न को बेच दिया ॥२४॥
सप के विना कर्मसमूह नष्ट नहीं हो सकता कान्तारं न यथेतरो ज्वलयितु ददो दवाग्नि विना दावाग्नि न यथा पर शमयितु शक्तो विनाम्भोधरम् ।