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सुभापितमञ्जरो
४८ परन्तु सम्यक्त्व रूपी चिन्तामरिण तीनो लोको मे सत्पुरुषो को समस्त सुख प्रदान करता है ॥११३
सम्यग्दृष्टि ही मोक्ष मार्ग मे स्थित है मुक्तिमार्गस्यमे पाहं तं मन्ये पुरुषोत्तमम् । भोक्तार त्रिजगल्लचस्याः स्वीकृतं येन दर्शनम् ॥११४॥ अर्थः जिसने सम्यग्दर्शन स्वीकृत किया है मै उसी पुरुषोत्तम को मोक्ष के मार्ग मे स्थित तथा तीन जगत् की लक्ष्मी का भोगने वाला मानता हूँ ॥११४।।
सम्यग्दृष्टि ही यहा धनी है महाधनी स एवात्र मतो दक्षः परत्र च । अनयष्टि सद्रत्न हदि यस्य विराजते ॥११॥ अर्थ:- जिसके हृदय मे सम्यग्दर्शन रूपी अमूल्य रत्न सुशोभित है वही चतुर मनुष्यो के द्वारा इस लोक तथा परलोक मे महाधनी माना गया है ॥११५।।
सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्र का मूल ज्ञानचारित्रयोमनं दर्शनं भापितं जिनः । सोपान प्रथमं मुक्तिधाम्नी बीजं वृपस्य च ॥११६॥ अर्था- जिनेन्द्र भगवान् ने सम्यग्दर्शन को ज्ञान और