________________
सुभाषितमञ्जरी
ज्ञान क्या है? येनात्मा बुध्यते तन्वं मनो येन निरुध्यते । पापद्विमुच्यते येन तज्ञानं ज्ञानिनो विदुः ॥२३३॥ अर्थ:- जिससे प्रात्मा तत्त्व को जानता है, जिससे मन का निरोध होता है और जिसके द्वारा आत्मा पाप से छूटता है, शानी पुरुष उसे ज्ञान कहते हैं ॥२३३॥
प्रवल ज्ञान कौन है ? येन रागादयो दोषा. प्रणश्यन्ति द्रतं सताम् । संवेगाद्याः प्रवर्धन्ते गुणा ज्ञानं तदुर्जितम् ।।२३४॥ अर्थ:- जिसके द्वारा सत्पुरुषों के रागादि दोष शीघ्र ही नष्ट होते हैं तथा सवेग आदि गुणो की वृद्धि होती है वह प्रवल ज्ञान है-उत्कृष्ट ज्ञान है । २३४॥
ज्ञान का लक्षण येनातविषयेभ्योत्र विरज्य शिवमनि । ज्ञानी प्रवर्तते नित्यं तज्ज्ञानं जिनशासने ॥२३॥ अर्थ- जिसके द्वारा ज्ञानी जीव इन्द्रियो के विषयों से विरक्त होकर निरन्तर मोक्ष मार्ग मे प्रवृत्ति करता है जिन शासन मे वही ज्ञान कहा जाता है ॥२३॥