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सुभाषितमञ्जरी
ज्ञान की महिमा ज्ञानयुक्तो भवेज्जीव स्वर्गश्रीमुक्तिवल्लभः । ज्ञानहीनो भ्रमेन्नित्यं संसारे दुःखसागरे ॥२३६॥ अर्थ:- ज्ञान से युक्त जीव स्वर्ग की विभूति तथा मुक्ति का स्वामी होता है और ज्ञान रहित जीव दुखो के समुद्र स्वरूप इस ससार मे निरन्तर भ्रमण करता है ॥२३७॥
ज्ञानहीन मनुष्य गुण और अगुण को नही जानता ज्ञानहीनो न जानाति धर्मपारगुणागुणम् । हेयाहेयविवेकं च जात्यन्ध इव भास्करम ॥२३७॥ अर्थ - जिस प्रकार जन्मान्ध मनुष्य सूर्य को नहीं देखता है उसी प्रकार ज्ञानहीन मनुष्य धर्म के गुण, पाप के अवगुण तथा हेय और उपादेय के विवेक को नही जानता। .
उपकरणदान प्रशंसा
वस्त्रदान का फल आर्येभ्य आयिकाम्यश्च वस्त्रदानेन धीधनः । भरजोऽम्बरधारी स्याच्छुक्लध्यानी मवान्तरे ॥२३॥