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सुभाषितमञ्जरी
अर्थ:- ऐलक क्षुल्लक तथा आर्यिका के लिये वस्त्र देने से बुद्धिमान् मनुष्य इस भव मे उज्ज्वल वस्त्रो का धारी और भवान्तर मे शुक्लध्यान का धारक होता है ।२३८०
कमलानि महार्घाणि विशालानि धनानि च । वासोदानेन वासांनि संपद्यन्ते सहस्रशः ॥ २३६ ॥
अर्थ:- वस्त्रदान से हजारो वार कोमल, महामूल्य, विशाल
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और सघन वस्त्र प्राप्त होते हैं ||२३६||
पीछी और कमण्डलु के दान का फल
मयूरवर्हदानेन सपुत्रश्चिरर्जवित । दानात्कमण्डलो: पात्रे निर्मलाङ्गः शुचित्रतः ॥ २४० ॥
:- पात्र के लिये मयूरपुच्छ से निर्मित पीछी के देने से वह मनुष्य पुत्र सहित चिरकाल तक जीवित रहता है और कमण्डलु के देने से निर्मल शरीर और निरतिचार व्रत का धारक होता है || २४०॥
पेयदान का फल
ददती जनतानन्दं चन्द्रकान्तिरिवामला । जायते पानदानेन वाणी तापापनोदिनी । २४१ ॥