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सुभाषितमञ्जरो
दया प्रशंसा
मब जीवो पर दया करना चाहिये सर्वप्राणिदया जिनेन्द्रगदिता स्वर्गार्गलोद्घाटिका सर्वश्रायसमुक्तिसौख्यजननी कीाकरा प्राणदा । संसाराम्बुधितारिका गुणकरी पापान्तिका प्राणिनां पद्रत्नत्रयभूमिका कुरु सदा सर्वेषु जीवेषु च ।।१८६।।
अर्श:- जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कही हुई समस्त प्राणियो की दया स्वग के अर्गल को खोलने वाली है मोक्ष के समस्त सुखो को उत्पन्न करने वाली है, कीर्ति की खान है, प्राणो को देने वाली है, ससार समुद्र से तारने वाली है, गुणो को पैदा करने वाली है, प्राणियो के पाप को नष्ट करने वाली है तथा सभ्यक् रत्नत्रय की भूमिका है, हे भव्यजीवो । ऐसी दया को तुम सदा समस्त जीवो पर धारण करो ॥१८६।।
निर्दय मनुष्य, मनुष्य नही है बालेषु वृद्धषु च दुर्वलेषु भ्रष्टाधिकारेषु निराश्रयेषु । रोगाभियुक्त षु जनेषु लोके येषां कृपानास्ति न ते मनुष्याः।१६। अर्थ:- इस संसार मे बालको पर, वृद्धो पर, दुर्बलों पर,